सामने घर है,
घर में खिड़की है,
खिड़की के पार दिखती है
एक मेज।
मेज पर पन्ने हैं,
दबे हैं
पेपर वेट के तले,
जब उड़ते हैं
मैं समझता हूँ
हो गया है
विद्युत् विभाग का उपकार।
उफ़ पेपर उड़ रहे हैं।
आदमी झल रहा है
हाथ से पंखा
और एक असफल प्रयास।
दबती नहीं है सफोकेशन।
©विमल कुमार शुक्ल'विमल'
घर में खिड़की है,
खिड़की के पार दिखती है
एक मेज।
मेज पर पन्ने हैं,
दबे हैं
पेपर वेट के तले,
जब उड़ते हैं
मैं समझता हूँ
हो गया है
विद्युत् विभाग का उपकार।
उफ़ पेपर उड़ रहे हैं।
आदमी झल रहा है
हाथ से पंखा
और एक असफल प्रयास।
दबती नहीं है सफोकेशन।
©विमल कुमार शुक्ल'विमल'
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