रविवार, 8 जनवरी 2012

मँहगाई


लोग अक्सर मँहगाई का जिक्र करते हैं और बताते हैं कि उनके जमाने में एक रुपये में जितनी चीजें मिल जाती थीं उतनी चीज खरीदने के लिये अब सैकड़ों रुपये चाहिये मगर वे यह भी बताते हैं कि पहले आदमी के पास इतनी सुख सुविधाओं के साधन नहीं थे। तो क्या कुछ सम्बन्ध है मँहगाई और अमीरी गरीबी में अपने दोहों के माध्यम से मैंने देख पाने व दिखा पाने का प्रयत्न किया है कितना सफल हूँ यह आप जानें।
मँहगाई की कृपा से, बनियाइनि है कोट।
रूपया पहले कठिन अब, सरल हजारी नोट॥१॥
पुरखे नंगे पैर ही,पहुँच गये निजधाम।
मँहगाई का वक्त है, लरिका पहिने चाम॥२॥
मन्दी में सिर पर रही, कबहुँ न साबुत फूस।
आज भवन कन्क्रीट का,छ्तों टँगे फानूस॥३॥
मंदी में एक साइकिल चली चवालिस साल।
मँहगाई में बदलती फटफटिया हर साल॥४॥
मिट्टी का दीपक कहाँ घर घर रहा नसीब।
मँहगी विद्युत लैम्प की सब जानें तरकीब॥५॥
बप्पा को सरकार का मिला नहीं स्कूल।
कान्वेन्ट में पढ़ रहे मेरे घर के फूल॥६॥
प्रेमचन्द की कफन के घीसू माधव नित्य।
जन्क फूड भरपेट खा, व्हिस्की पी करें नृत्य॥७॥
मँहगाई ने भर दिये बहुतों के भण्डार।
मन्दी में सूने रहे सब, आँगन घर द्वार॥८॥
तेजी मन्दी पर बहस, बिल्कुल है बेकार।
बहती गंगा द्रव्य की, जो उतरे सो पार॥९॥


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