शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024

विरह वेदना

ना पिय पाये न पायी पाती।
सावन माह जल रही छाती।
खेत खेत बिखरी हरियाली,
हृदय  मरुस्थल बिछुड़न व्याली।।1।।
तन तृण विरस ज्वलन हित तत्पर।
प्राण प्रयाण चाहते सत्वर।
दोनों अपनी गति पा जाते,
प्रिय दर्शन को ठहरे हठकर।।2।।
दुरभिसंधि है अनिल अनल की।
दिखे न पीड़ा उर में छलकी।
नयन नीर का कोष शून्य है,
पलकें चाह करें एक पल की।।3।।

रविवार, 10 मार्च 2024

दिग्विजेता


उर दिया है नेह घृत है,
और जीवन वर्तिका।
दीप क्षण क्षण जल रहा है,
विश्व में सत को समर्पित।
पथ सुचिंतित पग सुचिंतित,
प्रेय भी है श्रेय भी।
मनुज भी मैं मनज भी मैं,
प्यास मैं ही मैं पयस्।
पथ पथी गन्तव्य गति सब,
हो गये हैं एक रॅंग।
और मैं संग में तुम्हारे,
दिग्विजेता समर-ध्वज।

शनिवार, 2 मार्च 2024

मन की कर ले

कदरदान तो आयेंगे ही बाकी को फुर्सत न मिलेगी।
जहॉं जमेंगे पीने वाले साकी को फुर्सत न मिलेगी।।
तेरे हित में ये अच्छा है मन की कर ले इस महफिल में,
ओ रक्कासा! यहॉं से जाकर अन्य कहीं इज्जत न मिलेगी।।
नीचे गिरना जल छोंड़े तो प्यासे सब मर जायेंगे,
आग अगर नीचे गिर जाये धरती पर जन्नत न मिलेगी।
मेरी पुस्तक के ग्राहक हैं चूहे, दीमक, चूरन वाले,
मुझे पता है छपवा भी दूॅं कविता की कीमत न मिलेगी।
जिससे जो भी मिली नसीहत सबकी सब मेमोरी में,
जो भी चाहे सब ले जाये बार बार मोहलत न मिलेगी।

शनिवार, 24 फ़रवरी 2024

हाथों पर अम्बर

पहले पहले डर लगता है।
फिर जंगल भी घर लगता है।
पूरे मन से पर्वत ठेलो,
तो पक्षी का पर लगता है।।
उर में संशय घर कर जाये,
कटहल लटका सिर लगता है।
कोई अपना ही ठग जाये,
असली झटका फिर लगता है।।
श्रमसीकर-सरि बहा चुके यदि,
हाथों पर अम्बर लगता है।
धैर्य अंगीठी पर जो तपते,
उनका ही नम्बर लगता है।।
प्रेम परोसी थाल न पायी,
अमृत भी हो गर लगता है।
पाप कमाकर पुण्य कर रहे,
काशी भी मगहर लगता है।।

हमारीवाणी

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