समय ने कविता के क्षेत्र से राजनीति के क्षेत्र में पटक दिया। एक साधारण अध्यापक हूँ, राजनीति की बारीकियाँ नहीं समझता। न देना जानता हूँ न माँगना। किसी के काम आता हूँ यह भी मुझे नहीं पता। फिलहाल मैं लोगों से काम नहीं ले पाता यह मुझे लगता है। मेरे से किसी का कोई काम हो जाए या किसी को कुछ मिल जाए अथवा मेरा कोई काम किसी से चल जाए यह ईश्वर की अनुकम्पा है। अपना सिद्धांत है अजगर करै न चाकरी
छोटे भाई हैं। आम आदमी पार्टी से 155 विधानसभा शाहाबाद से विधायक पद के प्रत्याशी हैं। व्यवहार कुशल हैं, क्षेत्र में जनप्रिय हैं, विजय प्राप्ति की संभावनाओं और आत्मविश्वास से ओतप्रोत हैं। शिवाजी की भाँति 90 सिपाही लेकर औरंगजेब की 10000 की सेना से टकराने और पराजित करने का हुनर रखते हैं। दो बार जिला पंचायत सदस्य पद के लिए अपार समर्थन व मत भी प्राप्त कर चुके हैं।
लोगों ने दोनों बार कहा तुम न जीतोगे मगर जीते। इस बार भी लोग अनुमान लगा रहे हैं। इनके आसपास जीतोगे या नहीं जीतोगे का कयास लगाने वालों की बड़ी भीड़ है। जो अपने अपने अनुमान सही होने का दावा करती है। वे लोग तो सबसे आगे बढ़कर भविष्य बताते हैं जिन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा। मैं अपने छोटे भाई को वैसे ही जानता हूँ जैसे माँ अपने बालक को। यह भीड़ की नहीं सुनते। इन्हें पता होता है कि यही जीतेंगे। सफलता के लिए यह आवश्यक है। भीड़ भटकाती है और जापान जाने वाले को रंगून पहुँचाती है। अपने सीमित संसाधनों के द्वारा एक बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक अच्छी योजना सदैव फलवती होती है। यह बात इन्हें पता है। इस योजना निर्माण का गुरुतर दायित्व निभाने में मुझे अपना योगदान देना है। ईश्वर मेरा सहायक हो।