मैं प्रेम प्रिये
तेरा ही तुझे न्यौछावर करता हूँ|
मैं शांत अनल दहकाओ
नहीं |
निज आहुति दे भड़काओ
नहीं|
तुम दूर रहो वीणा से
मेरी,
छू तार इसे झनकाओ
नहीं|
मेरा पथ बहुत सरल
सुन री,
तुम आके इसे उलझाओ
नहीं|
मैं खुश हूँ सदा
अपने में प्रिये
मेरी मौज में टांग
अडाओ नहीं|
तेरा मंगल हो अरदास
यही निसि वासर करता हूँ|
मैं प्रेम प्रिये
तेरा ही तुझे न्यौछावर करता हूँ|
धनवान नहीं गुणवान
नहीं
मैं रूप की अनुपम
खान नहीं|
मेरा मान नहीं अपमान
नहीं
जग में सुन री मेरी
शान नहीं|
ऐश्वर्य नहीं सुखसाज
नहीं
निज आगत का अनुमान
नहीं |
मैं कैसे कहूँ ऐ
प्रिय तुमसे
मुझे प्रेम के पथ का
ज्ञान नहीं|
सुन री तुझको अर्पित
तुझसे जो कांवर भरता हूँ|
मैं प्रेम प्रिये
तेरा ही तुझे न्यौछावर करता हूँ|
तेरे अरूणिम अधरों
पर मुस्की
यहे राज भरे नयना
गहरे
तेरे गालों का
स्पर्श मधुर
तेरे तन पे उरोजों
के पहरे
लट कुण्डलिनी हैं
शीश चढ़ी
कानों में कनक
कुण्डल फहरें|
पर लोभ मुझे निज
साधना का
अभी प्रेम के मेरे न
दिन बहुरे|
मेरी राह तको यह एक
विनय मैं गाकर करता हूँ|
मैं प्रेम प्रिये
तेरा ही तुझे न्यौछावर करता हूँ|