कैसा अपना देश
हो गया कैसी है ये लाचारी।
वहशीपन से सहम
गयी है आर्यावर्त्त की नारी।
क्यों लोगों ने
भुला दिये आदर्श पुरातन अपने।
टूट रहे हैं राष्ट्रपिता
ने देखे थे जो सपने।
रावण से भी नहीं
हुई थी यों सीता की ख्वारी।
वहशीपन से सहम
गयी है आर्यावर्त्त की नारी।
जिस गरिमा के लिये
देश है सारे जग से न्यारा।
उसको धूल-धूसरित
करते देकर जख्म करारा।
जिन आदर्शों की
खातिर हम विश्व गुरू कहलाये।
कहाँ गये आदर्श
सभी वो आकर कोई बताये।
कैसे रह पायेंगी
सुरक्षित अब बेटियाँ हमारी।
वहशीपन से सहम
गयी है आर्यावर्त्त की नारी।
पूजनीय नारियाँ
जहाँ समझी जाती थीं अब तक।
वहीं देवियाँ अब
बोलो ये जुल्म सहेंगी कब तक।
कुत्सित हुए हृदय
लोगों के लज्जा जरा न आती।
अपने बेटों के
कुकृत्य से माँ भारती लजाती।
रो उठती उसकी भी
आत्मा घाव मिले हैं भारी।
वहशीपन से सहम
गयी है आर्यावर्त्त की नारी।
फाँसी देने से
व्यभिचारी सजा नहीं पायेंगे।
कुछ दिन बाद इसी
घटना भूल सभी जायेंगे।
सजा दिलाओ ऐसी
जिससे सबक सभी वहशी लें।
उर हों भयाक्रान्त
उनके अधरों से छीन हँसी लें।
करो नपुँसक भारत
में जो भी हो बलात्कारी।
तभी मुस्करा पायेगी
फिर आर्यावर्त्त की नारी।
वहशीपन से सहम
गयी है आर्यावर्त्त की नारी।