जंगल के पशु एक दिन, हुए कहीं एकत्र।
करने को सुविचार यह,हो वन में जनतन्त्र॥१॥
सबको रोटी , वस्त्र, घर, हो हर कर को काम।
शेरों के खरगोश अब, होंगे नहीं गुलाम॥२॥
रोटेशन से चलेगी, जंगल की सरकार।
आरक्षण की बहुत है, चूहों को दरकार॥३॥
शेर न राजा आज से, मन्त्री नहीं सियार।
सिंहासन आसीन हो, चुनी हुई सरकार॥४॥
सेनापति की पोस्ट पर, भईंसा हो आसीन।
नीलगाय, गदहा, सुअर, मन्त्री होंगे तीन॥५॥
बन्दर, चूहा, चिरैयाँ, तकैं अन्नभण्डार।
लोकपाल लागू करौ, मेटौ भ्रष्टाचार॥६॥
उल्लू, गिद्ध, बिलाव अब, किया करेंगे न्याय।
संसद जैसा यहाँ भी, होगा एक निकाय॥७॥
चर्चा में आये नहीं हाथी चीता बाघ।
आयोगों के मुख्य पद, झटकेंगे ये घाघ॥८॥
तभी कहीं से आ गया, निज दल बल संग शेर।
सभा छोड़ भागे सभी, किये बिना कुछ देर॥९॥
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