शनिवार, 8 अक्टूबर 2022

भूला हुआ गुलाब


भूला हुआ गुलाब है अपने रुआब को।
गुड़हल चुरा चुके हैं रंग-ए-गुलाब को।।
जल्दी निकल गये सब साकी के मुँहलगे,
हम तो सुबह गये ले सारे हिसाब को।।
मन में बसी हुई है सूरत बहिश्त की,
मैं क्या करूँ उठाकर तेरे हिजाब को।।
हमने तो अपनी घिस घिस खुशबू बिखेर दी,
रख ले बचाके तू ही अपने शबाब को।।
या तो बढ़ा न मुझसे कोई भी राब्ता,
या फिर किनारे रख दे अपने नकाब को।।
यूँ तो कई जवाब हैं हर एक सवाल के,
देता 'विमल' हमेशा उत्तम जवाब को।।

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