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गुरुवार, 29 दिसंबर 2022

शिल्प का अनुराग

नई कविता के प्रवाह में भ्रमित त्रुटिपूर्ण गद्य लेखन कर उसे कविता का रँग प्रदान करने वाले स्वनामधन्य मनीषियों के लिए। आत्मावलोकन करें और परिमार्जन करें। अन्यथा आपकी रचना पढ़कर मैं अथवा अन्य आपकी रचना पर चाहे जैसी प्रसंशात्मक टिप्पणी चेंप दें किन्तु निर्मम समय आपको किनारे कर आगे बढ़ लेगा। आप जुगाड़ से पाठ्यक्रम आदि में स्थान प्राप्त कर लें और परीक्षार्थी अच्छे अंकों की अभिलाषा में अनमने चित्त से आपको रट भले लें। हृदय का सम्राट होने के लिए हृदयग्राही रचना होगा। 

आप यदि पूजा करें पथ नाग पाकर।
तृप्त हों वे रक्तबिन्दु-पराग पाकर।।
यज्ञ सारे ही हुए निज तृप्ति के हित,
देवता भी तृप्त हों निज भाग पाकर।।
यूँ बसंती सुरभि कम मादक नहीं है
किन्तु मस्ती बहुगुणित हो फाग पाकर।।
मानता हूँ पुष्टि होती अन्न में ही,
किन्तु बढ़ता स्वाद थोड़ी आग पाकर।।
मात्र आटा मत बिखेरो भूमि तल पर,
चौक पुरती है कला का पाग पाकर।।
भाव अन्तःकरण में जो जन्मते हैं।
खिलखिलाते शिल्प का अनुराग पाकर।।

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