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शनिवार, 31 दिसंबर 2022

बेरहमी

दिसम्बर २००६

वह बहुत खूबसूरत और दिल की सच्ची है।
जैसे तुरंत पैदा हुई सूअर की बच्ची है।
रात भर करवटें बदलीं और बहुत तड़पा किये।
हाय कितनी बेरहमी से काट गया बिच्छी है।
जाने कैसी हड़बड़ी थी गिर गया मैं खाट से,
घुस गयी थी एक चुहिया इस कदर रजाई में।
गुदगुदी का लुत्फ पूरा हाय उस दिन गया,
पी गया जिन्दा जुएं को भूल से दवाई में।
मैंने समझा चल गयी था आँख में भुनका पड़ा,
इस समझ का खमियाजा भी बहुत महँगा पड़ा।
चाँद पर जूते मिले बिखरे हुए दो चार सेट,
राज कैसा चाँद पर जो दाग ये गहरा पड़ा।
बन्द सारी गुफ्तगू है आजकल आबोहवा से,
बेवफा थी रूह भी क्या साँस को रुकना पड़ा।

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