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प्रतिबन्ध या नियमन
प्रेम कोई पाप नहीं तो क्यों अब तक न पापा जानते हैं और न मम्मी| चलो अपने मम्मी-पापा को छोड़ो| क्या कभी अपने प्रेमी या प्रेमिका के मम्मी-पापा को बताया कि तुम दोनों एक दूसरे से प्रेम करने का पुण्य कमा रहे हो| अगर नहीं, तो यह प्रेम यथार्थ में पाप है? क्योंकि पाप और पुण्य की परिभाषा मात्र इतनी है कि कि किसी कर्म की सामाजिक स्वीकृति का स्तर क्या है? अन्यथा न तो कुछ पाप और न कुछ पुण्य|
क्या कभी सोचा है कि प्रेम की परिणिति क्या है? यदि इस प्रेम की परिणिति विवाह है तो माँ-बाप को सूचित कर उनकी स्वीकृति लो| चलो नहीं बताया, नहीं ली स्वीकृति, तुम हो गये बड़े, तुम्हें है अपने जीवन- साथी के चयन का अधिकार तो कम से कम यह तो जानो कि वह किस परिवार, किस शहर या किस गली-मुहल्ले से है| कभी अपने प्रेमी-प्रेमिका के घर भी हो आओ बिना बताये| पता तो चले वह पूर्व में विवाहित तो नहीं या जो खुद को राजकुमार/ राजकुमारी बता रहा/रही है वह किसी अपराधी गैंग के सरदार तो नहीं| विवाह के सफल संचालन के लिए इसका ज्ञान अतिआवश्यक है|
यदि इस प्रेम की परिणिति विवाह नहीं तो सिर्फ मौज-मस्ती के लिए सम्बन्ध बना रहे हो तो किसी भी प्रकार की हानि उठाने पर एक दूसरे पर आरोप लगाने का कोई तुक नहीं| जैसा किया वैसा भरो, वरना अपने माँ- बाप पर भी विश्वास करो|
आजकल प्रायः एक शब्द प्रचलन में है ‘लव जेहाद’| लव समझ में आया और जेहाद भी| लेकिन लव जेहाद बिल्कुल समझ में नहीं आया| आखिर आप इतने भोले क्यों हैं कि आपकी बेटी किसी का बिस्तर गर्म कर रही है और आप उसके बारे में जानते नहीं| कुछ माँ- बाप कह सकते हैं कि बेटे- बेटी पढ़ाई-लिखाई व काम- धंधे के सिलसिले में बाहर रहते हैं तो हर बात पता नहीं चलती| सच है साहब लेकिन यह क्या बात हुई कि आपके सामने आपकी बेटी किसी से हँस-बोल रही वह आपके परिवार का नहीं है और सिर्फ यह मान कर संतोष कर रहे हैं कि आपकी बेटी का दोस्त है तो सावधान होइए, बाद में आपको कहने का कोई अधिकार नहीं आपको पता नहीं चला| अरे बन्धु हम नौकर रखते हैं तो उसके बारे में जाँच करते हैं आप किसी को जीवन का हिस्सा बना रहे हैं और आपको पता नहीं? तो वैरी बैड|
एक अन्य शब्द आजादी भी बहुत प्रचलन में है विशेषकर महिलाओं की आजादी| आरोप लगता है पुरुषों पर कि पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को खुलकर अपनी बात कहने, हँसने-बोलने व व्यवसाय आदि की आजादी नहीं है| कभी-कभी आजादी की यह भावना इतनी प्रबल हो जाती है कि अरस्तू मूर्ख प्रतीत होता है जिसने कहा था, “मनुष्य स्वतन्त्र जन्मता है और स्वतन्त्र मरता है किन्तु वह सर्वत्र बेड़ियों में जकड़ा हुआ है|” क्या स्त्री क्या पुरुष बंधन में कौन नहीं है? अगर आप एक परिवार हैं, तो यह बंधन अनिवार्य हैं और इन्हें सबको मानना चाहिए|
नई पीढ़ी के बच्चे प्रायः उच्छ्रंखल हो गये हैं और माँ-बाप आधुनिकता के नाम पर उनकी उच्छ्रन्खलता को सहन कर रहे हैं| यह स्थिति परिवर्तित होनी चाहिए| अन्यथा आप लव जेहाद क्या किसी भी प्रकार के धोखों से बालकों को रोक नहीं पायेंगे|
अभिभावकों का यह उत्तरदायित्व है कि वे उन सबका बायोडाटा अवश्य रखें जो उनके सम्पर्क में हैं| एक पढ़ी लिखी लड़की जब यह कहती है किसी लड़के ने अपना परिचय छिपाकर साल दो साल उसका शारीरिक शोषण किया है तो उससे अधिक मूर्खतापूर्ण कुछ हो नहीं सकता| जब हम किसी के पास अपनी कोई धरोहर रखते हैं तो भलीभाँति पड़ताल कर उसके पास रखते हैं| आपने अपना जीवन ही किसी को सौंप दिया| बिना यह जाने कि सामने वाले का धर्म, जाति और सम्प्रदाय क्या है? चलो सामने वाले पर विश्वास कर लिया धोखा हो गया तो इसमें कौन सी महानता है कि आप विवाहपूर्व सम्बन्धों के राजी हो गईं|क्या आपको पता नहीं विवाह जैसी संस्था किसलिए है? स्पष्ट है कि आप आजादी के नाम पर उम्र का भरपूर आनन्द ले रहीं थीं| ऐसा नहीं है कि लडकियाँ ही इस धोखे का शिकार होती हैं लड़के भी फँस जाते हैं| मिस्डकाल, व्हाट्स एप्प और फेसबुक और न जाने क्या क्या| पहले दोस्ती गंठती है फिर एक दिन पहुँचते हैं झोला उठाकर प्रेमिका के घर तब माँ-बाप को पता चलता है कि साहबजादे का अपहरण हो गया है या फिर पुलिस में जाने की धमकी देकर अच्छी खासी रकम ऐंठ ली जाती है| जब से मी-टू चला है तब से ऐसे मामले कुछ ज्यादा ही प्रकाश में आ रहे हैं|
इस सबमें बच्चों का दोष कम है अभिभावकों का अधिक| उन्होंने बच्चों को इतना लाड़-प्यार करना शुरू कर दिया है कि बच्चे अभिभावकों की उपेक्षा करने लगे हैं| उन्हें लगता है कि अभिभावक के मात्र कर्त्तव्य हैं और अधिकार मात्र उनके| समाज में एक अनुचित धारणा बन गयी है कि बच्चे बड़े हो गये और उनको अपने बारे में निर्णय का अधिकार है? सत्य है उनको अपने बारे में निर्णय का अधिकार है किन्तु तथ्यों और अनुभवों के प्रकाश में और ये तथ्य तथा अनुभव अभिभावकों के पास होते हैं| अन्यथा धोखा होने पर बालक-बालिकाएं तो रोते ही हैं माँ-बाप को भी रोना पड़ता है या कहें कभी कभी केवल माँ-बाप को ही रोना पड़ता है| क्योंकि त्रुटियाँ करने वाला तो स्वयं को मानसिक रूप से परिणाम के लिए प्रशिक्षित कर लेता है|
अपने बालकों के लिए एटीएम न बनें| एटीएम से धन निकासी की कुछ शर्तें होती हैं| वे शर्तें निर्धारित करें और इस स्वतन्त्रता को सीमित करें| अभिभावक होने के नाते आपके पास पर्याप्त अधिकार हैं और उन अधिकारों को पहचानें और प्रयोग करें|
ऋषि वेद व्यास ने एक बार ऋषि जैमिनी से कहा था कि स्त्री और पुरुष के मध्य मात्र एक सम्बन्ध होता है कि वे स्त्री और पुरुष हैं| ऐसे में जो आजकल यह माना जाने लगा है लड़के लडकियाँ मित्रता कर सकते हैं| यह मित्रता बिल्कुल आग और फूस की मित्रता है| यह नितांत प्रकृति के नियमों के विपरीत है कि एक युवा और युवती एकान्त में मिलें और वे मित्र ही रहें| बॉय फ्रेंड व गर्ल फ्रेंड जैसे शब्द फिल्म व टीवी सीरिअल में ही अच्छे लगते हैं| व्यवहारिक जीवन में ये शब्द अनौचित्य पूर्ण हैं| फ्रेंडशिप प्यार में और प्यार विवाह में बदला तो ठीक नहीं तो व्यभिचार में बदल ही जाता है| तो फिर क्यों चिल्लाता है? बेटी हों या बेटे उन्हें मर्यादा सिखाएं और समझाएं| मर्यादा स्वतन्त्रता का अतिक्रमण नहीं है स्वतन्त्रता का नियमन है| उन्हें समझाएं कि नदी के तट नदी के बहने पर प्रतिबन्ध नहीं हैं, वे नदी की परिभाषा हैं ये तटबंध टूटेंगे तो जो लोग नदी को पुण्यदायिनी मानकर उसकी पूजा करते हैं वे लोग नदी को कोसेंगे और उससे दूर भागेंगे|
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मंगलवार, 15 सितंबर 2020
हिन्दी हित
गुरुवार, 10 सितंबर 2020
मनुआ तेरा खेल
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निजीकरण
खुद को कहा फकीर, फिर बाबा बन गए।
मन की करली बात, मन ही में तन गए।
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रविवार, 6 सितंबर 2020
हिन्दी का प्रयोग करें
तेरहवीं सदी से लेकर अठारहवीं सदी तक प्रायः एक भाषा अस्तित्व मध्य भारत में रही जो आमजन के द्वारा प्रयोग की जाती रही जिसमें क्षेत्रीयता का प्रभुत्व रहा या कहें प्राचीन भारतीय भाषाओँ के शब्द बहुलता से प्रयोग होते थे| जब यह भाषा मुस्लिम दरबारों में पहुँचती थी इसी में अरबी फारसी के शब्दों का घनत्व बढ़ जाता था| जब यही भाषा राजदरबारों से बाहर आयी तो एक अजब घालमेल हुआ एक ऐसी भाषा प्रचलन में आयी जिसके लिए नाम देना ही कठिन (सिर्फ मेरे विचार से)| जैसे ही अंग्रेज आये उन्होंने फूट डालनी प्रारम्भ की और वे इस भाषा के लिए दो नामों की धारणा लेकर आये| एक हिन्दी दूसरी उर्दू| जो देवनागरी लिपि में संस्कृतनिष्ठ लिखी गयी वह हिन्दी और जो फारसी लिपि में अरबीफारसीनिष्ठ लिखी गयी वह उर्दू| आपको देवकी नन्दन खत्री का उपन्यास 'चन्द्रकान्ता' याद होगा| जरा याद करो किस भाषा में है? कहते हैं कि वह हिन्दी के प्रथम तिलिस्मी उपन्यास कार थे| मैंने इस ग्रन्थ का कुछ अंश पढ़ा है अधिकांश उर्दू शब्दावली का प्रयोग है|
अंग्रेजों ने भले ही शिक्षा के क्षेत्र में अंग्रेजी को आगे बढ़ाया हो किन्तु मुझे आजतक समझ में नहीं आया कि क्यों अदालती काम काज आज भी उर्दू में होते हैं| अब धीरे धीरे भले ही लिखापढ़ी में हिन्दी प्रयोग में आ रही हो किन्तु फिर भी बहुत सा काम अभी भी उर्दू में ही होता है| थोड़े दिन पहले तक प्रशासनिक परीक्षा में अंग्रेजी का बोलबाला था| धीरे धीरे ही सही हिन्दी व दूसरी भारतीय भाषाओं के विद्यार्थी भी अब इन परीक्षाओं में बैठ पाते हैं|
मुझे बहुत बार ऐसा प्रतीत होता है कि उपरोक्त को ध्यान में रखें तो हिन्दी बिल्कुल नवीन भाषा है जो अपने विकास के लिए छटपटा रही है| आओ इसके विकास में हम भी अपना योगदान दें| जहाँ अनिवार्य न हो वहाँ हिन्दी का ही लिखने पढ़ने में प्रयोग करें| सामने वाले को हिन्दी के प्रयोग के लिए प्रोत्साहित करें|