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गुरुवार, 10 सितंबर 2020

निजीकरण

 खुद को कहा फकीर, फिर बाबा बन गए।  

मन की करली बात, मन ही में तन गए।

कितना किसे दिया, झोली में आँकड़े हैं, 
पिचके हुए हैं पेट, रोजगार छिन गए। 
एक बार मीडिया को उस ओर भेजिये, 
मजदूर मालिकों के शोषण में सन गए। 
तुम पर चढ़ा भूत, पूँजीवाद का प्रबल, 
मेरे कई हजार, #सहारा में छिन गए। 
(सहारा इण्डिया तमाम लोगों का पैसा सालों से दबाये बैठी है ये निजीकरण है) 
लगते हैं कई साल, विज्ञापन फिर नियुक्ति, 
नौकरी हित छेद, चप्पल में बन गए। 
चीन, पाकिस्तान, कँगना और रिया, 
बाकी समाचार हो शायद दफन गए। 
मुल्क का मखौल हर कोई उड़ा गया,
कोरोना की ओट, तुम हिटलर बन गए।

 

कृपया पोस्ट पर कमेन्ट करके अवश्य प्रोत्साहित करें|

7 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (११-०९-२०२०) को '' 'प्रेम ' (चर्चा अंक-३८२२) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  2. चीन, पाकिस्तान, कँगना और रिया,
    बाकी समाचार हो शायद दफन गए।
    बहुत सटीक.... और कि तो जैसे देश में कुछ हो ही नहीं रहा बस एक बात पकड़ कर चीखना चिल्लाना।
    बहुत सुन्दर समसामयिक सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक आभार बहन। जो है सो लिख दिया।

      हटाएं
    2. हार्दिक धन्यवाद बहन। जो देखा सो लिखा।

      हटाएं