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बुधवार, 23 दिसंबर 2020

लोटा नहीं न डोर

मेरी खुली किताब के पन्ने पलट के देख।
चाँदी के भाव बिक गये सिक्के गिलट के देख।।1।।
केवल दरोदिवार से पूछो नहीं हालात,
सुननी जो तुझको खनक तो बिस्तर उलट के देख।।2।।
यूँ तो हमारे चित्त का कुछ भी नहीं प्रसार,
ब्रह्माण्ड बस गया यहाँ थोड़ा सिमट के देख।।3।।
रूखा बहुत स्वभाव है सब जानते हैं बन्धु,
स्नेहिल हृदय समूर सा इससे लिपट के देख।।4।।
बारिश नहीं हुई तो क्या फिसलन है हर जगह,
चिकना हूँ मार्बल सा इसपर रपट के देख।।5।।
भइया 'विमल' के पास थी लोटा नहीं न डोर,
कैसे मिटी ये प्यास फिर, बादल झपट के देख।।6।।

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