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मंगलवार, 16 मई 2017

नया पाठ

16/05/2017
मुहब्बत भरी शायरी लिख रहा हूँ।
स्व जीवन की नव डायरी लिख रहा हूँ।
जो पन्ने पुराने लगे ही रहेंगे,
नया हुस्न कारीगरी लिख रहा हूँ।।1।।
नया पाठ नामे गुलब्बो बढ़ाया।
बुढ़ापे से यौवन में फिर लौट आया।
खुदा की कसम राम के नाम से ली,
मरुथल में सागर से मैं खेल पाया।।2।।
गये जेठ आषाढ़ आया हो जैसे।
प्रकृति ने फिर प्राण पाया हो जैसे।
तड़प दिल में ऐसी कि बिच्छू डसा हो,
कहीं कोबरा काट खाया हो जैसे।।3।।
©विमल कुमार शुक्ल'विमल'

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