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सोमवार, 9 सितंबर 2013

दुकान चल रही है।

एक लेख पढ़ा लेखक विचार कर रहा था कि तमाम आरोपों के लगने जेल आदि हो जाने के बाद भी निर्मल बाबा और आसाराम बापू जैसे लोगों की दुकाने चल क्यों रही हैं। उनके यहाँ भीड़ और लोगों की आस्था में कमी क्यों नहीं होती।
अरे भाई यह हिंदुस्तान भेड़िया दसान यूँ ही तो नहीं कहा जाता है। यहाँ किसी की दुकान बंद नहीं होती। एक कहावत कही जाती है कसाई के कोसने से गाय तो नहीं मरती आपके सोंचने से दुकान भी बंद नहीं हो सकती। यहाँ दुकानें चल रही हैं जेल से आने के बाद भी साधू संतों की। किसी को ताज्जुब क्यों है? यहाँ जेल के अंदर दुकानें चल रही हैं गुंडे, मवाली, माफियाओं, नेताओं, चोरों, तस्करों, पुलिसवालों की। सभी के समर्थक मौजूद हैं समाज में।जितना बड़ा अपराधी उतनी बड़ी दुकान उतनी ज्यादा भीड़ धर्म हो या राजनीति आज के भारत का यही सच है।

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