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गुरुवार, 7 सितंबर 2023

इण्डिया बनाम भारत

हमारे गाॅंव-देहात में एक कहावत है कि "गुह मा ईंटइ डरिहौ तो छिट्टइ पैहौ"। जब से विपक्षी दलों ने इकट्ठे होकर अपने गठबंधन का नाम "इण्डिया" रख लिया तब से भाजपा को देश का नाम बदलकर भारत रखने की खुजली शुरू हो गई। यह वही भाजपा है जिसने अपने कार्यकाल में अपने अनेक कार्यक्रम इण्डिया के नाम पर शुरू किये हैं। उदाहरण के लिए, "मेक इन इंडिया, खेलों इण्डिया, डिजिटल इण्डिया, फिट इण्डिया आदि।" यह वही भाजपा है जिसने मुलायम सिंह यादव के द्वारा सन 2004 में उत्तर प्रदेश विधानसभा में लाये गये इण्डिया के स्थान पर देश का नाम भारत करने के प्रस्ताव का विरोध करते हुए सदन से बहिर्गमन किया था। यह इस देश की राजनीति की बड़ी सुन्दर विशेषता है कि पक्ष से विपक्षी और विपक्ष से पक्ष में जाने पर नेताओं के चश्मे का नम्बर बदल जाता है।
विपक्ष भी यह भूल गया कि एक समय कहा गया था, "इन्दिरा इज इण्डिया एण्ड इण्डिया इज इन्दिरा"। कहना अलग बात थी और होना अलग। इन्दिरा चुनाव हार गईं और चापलूसों का दिया नारा फ्लॉप हो गया।" कुछ ऐसा ही पुनः होने जा रहा है। अन्तर मात्र इतना है कि आज एक समूह अपने को इण्डिया घोषित कर रहा है। 
कोई भी व्यक्ति या समूह अपना नाम इण्डिया रख ले तो उसका उद्धार तो होने से रहा। हॉं अपने कर्म बदल लें तो बात दूसरी है। जिसकी हाल साल में कोई सम्भावना नजर नहीं आती।
मैंने एक सोसायटी का रजिस्ट्रेशन 1998 में कराया था। आज भी कार्यरत है। नाम है, "भारतीय चेतना समिति" आजकल भारतीय, राष्ट्रीय आदि नामों से संस्थाओं के पंजीकरण नहीं होते। मैं सोचता हूॅं अगर मैंने समिति का नाम कुछ और रखा होता तो क्या अन्तर आता। शायद कुछ भी नहीं। 
अब चाहे विपक्ष अपना नाम इण्डिया रख ले या पक्ष इण्डिया के स्थान पर भारत शब्द का प्रयोग करे। आम आदमी पर इसका क्या प्रभाव होगा? संविधान में भले ही लिखा है, "इण्डिया दैट इज भारत" और राजनीतिक लिखा पढ़ी में देश विदेश में भले ही इण्डिया शब्द का प्रयोग किया जाता है, आम भारतीय जनमानस इस देश को भारत के नाम से ही जानता है। जब जब कोई सनातनधर्मी संकल्प के मन्त्र का उच्चारण करता है तो वह यही करता है,
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ॐ अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2080, तमेऽब्दे नल नाम संवत्सरे दक्षिणायने ……. ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे ……. मासे …… पक्षे …….. तिथौ ……. वासरे (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया- श्रुतिस्मृत्योक्तफलप्राप्त्यर्थं मनेप्सित कार्य सिद्धयर्थं श्री ……….. (जिस देवी.देवता की पूजा कर रहे हैं उनका नाम ले)पूजनं च अहं क​रिष्ये। तत्पूर्वागंत्वेन ​निर्विघ्नतापूर्वक कार्य ​सिद्धयर्थं यथा​मिलितोपचारे गणप​ति पूजनं क​रिष्ये।
इस मन्त्र में कहीं इण्डिया शब्द का प्रयोग नहीं है। इस मन्त्र में स्पष्टतः भारतवर्ष शब्द का प्रयोग किया गया है।
पक्ष और विपक्ष जनहित के मुद्दों की उपेक्षा कर कृपया इस पर राजनीति न करें। इण्डिया को इण्डिया और भारत को भारत रहने दें। विपक्ष को चाहिए कि जनभावनाओं को समझकर ही किसी मुद्दे को हवा दे। आखिर विपक्ष को इसमें आपत्ति क्यों होनी चाहिए कि इण्डिया के स्थान पर शब्द का प्रयोग किया जाये। जब हम राष्ट्रगान का वाचन करते हैं तब भारत भाग्यविधाता शब्द का प्रयोग करते हैं न कि  इण्डिया भाग्यविधाता। विपक्ष को समझना चाहिए कि इण्डिया भारत  -भारत इण्डिया करके वह भाजपा को ही लाभ पहुंचायेगा। हाॅं यदि वह शान्त रहे तो शायद इण्डिया भारत -भारत इण्डिया के मुद्दे पर आम आदमी ध्यान ही न दे।
भाजपा को भी चाहिए यदि वह वाकई गम्भीर है तो संविधान में संशोधन कर "इण्डिया दैट इज भारत" शब्द समूह को हटाये और व्यर्थ का वितण्डा बन्द करे।

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