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शनिवार, 12 नवंबर 2022

नशा


चीलों के घर ही मिले, बन्धु! अस्थियाँ-माँस।
खरगोशों का कुटुम्बी, कठिन बचानी साँस।।
द्वेष नहीं है रंच भी, अपनी अपनी राह।
मुँह तो केवल एक है, आह करे या वाह।।
मंचों की चिंता नहीं, कवि हूँ भाँड़ न मित्र।
केवल खुद के ही लिए, रचूँ शब्द के चित्र।।
नशा जरूरी है बहुत, करते सुर नर नाग।
बिना नशे पनपे नहीं, कोई रँग या राग।।
चाय और नमकीन भी, सबको नहीं नसीब।
हम बस उससे काम लें, जो भी मिले करीब।।
ठग भी हुए हबीब हैं, रहा नहीं एतबार।
बैलगाड़ियाँ दे गए, ले गए मोटर कार।।

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 14 नवम्बर 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. मंचों की चिंता नहीं, कवि हूँ भाँड़ न मित्र।
    केवल खुद के ही लिए, रचूँ शब्द के चित्र।।
    वाह !

    जवाब देंहटाएं
  3. मंचों की चिंता नहीं, कवि हूँ भाँड़ न मित्र।
    केवल खुद के ही लिए, रचूँ शब्द के चित्र।।
    जी , बिंदास बोल । सुंदर रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  4. मंचों की चिंता नहीं, कवि हूँ भाँड़ न मित्र।
    केवल खुद के ही लिए, रचूँ शब्द के चित्र।।
    विमल भाई, सभी सार्थक पंक्तियों के बीच इन पंक्तियों ने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई है।भांड होते कवियों ने कवित्व की गरिमा को गिराया है।खुद के लिए लिखना बहुत सुकून देता है।सादर🙏

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    1. हार्दिक आभार बहन आपकी टिप्पणी से अभिभूत हूँ नमन।

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