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रविवार, 27 नवंबर 2022

देवर

घृणा को नैन में भरकर न छवि का ध्यान भी करना।
अगर है प्रेम किंचित भी तो उनका मान भी करना।
कपोलों पर भले पिटने की मेरे नीलिमा होगी,
अनुज! भौजाइयों से डर न तुमको ज्ञान भी रखना।।1।।
चढ़ा सावन सजन परदेश झूला कौन डालेगा?
बसन्ती पवन फागुन बिन देवर के मौन सालेगा।
दिवाली में बड़े भैया अगर घर देर से पहुँचे,
तो ड्योढ़ी पर दिवाली के दियों को कौन बालेगा??2??
हमारे देश में वर से अधिक देवर पियारा है।
निजी घर हो कि हो ससुराल वो सबका दुलारा है।
जहाँ देवर बना है पुत्र भाभी बन गयी है माँ,
कुटी का भार प्रभु ने लखन के कंधों उतारा है।।3।।

शुक्रवार, 25 नवंबर 2022

टिड्डा


ये महाशय किवाड़ पर ध्यान लगाये हैं। देखने में तो किसी पेड़ की पत्ती लग रहे हैं। किन्तु सावधान ये असली बहुरूपिये हैं ठग रहे हैं। फिल्म इन्डस्ट्री का कोई भी एक्टर और एक्ट्रेस इन सा अभिनय नहीं कर सकता। गूगल गुरु हर चीज की पोल खोल सकते हैं मगर गूगल लेन्स ने इन्हें पहचान नहीं पाया। 
जितने ईश्वर के रूप हो सकते हैं उतने इसके। यह टिड्डा है। हमारे यहाँ इसे बोट कहते हैं। 
इसमें रंग रूप बदलने की अद्भुत क्षमता होती है। हम मनुष्य हैं बस इस बात पर फूले नहीं समाते।

बुधवार, 16 नवंबर 2022

पत्तल चाटेगा कौन

कुत्ते सभी स्वर्ग जायेंगे तो पत्तल चाटेगा कौन?
यही प्रश्न कुत्तों से कर दो या लड़ते या रहते मौन।
पत्तलें भी जायेंगी स्वर्ग।
बिल्ली घंटी लेकर टहले चूहे सुनकर रहते मस्त।
चट कर जाती एक-एक को अपनी अपनी में सब व्यस्त।
जगत यह षड्यंत्रों का मर्ग।
ठेका लेकर बैल चल दिये खींचेंगे शेरों की खाल।
पढ़े लिखे बैलों की आदत छील रहे मृतकों के बाल।
तथ्य बिन हैं सर्गों पर सर्ग।
मैं तो समता की धरती पर दिखलाने को उत्सुक नृत्य।
किन्तु हृदय फटने लगता है देख देखकर जन के कृत्य।
घुस पड़े हैं वर्गों में वर्ग।

मर्ग-चरागाह/घास का मैदान
सर्ग-अध्याय
वर्ग-समूह, जाति,

शनिवार, 12 नवंबर 2022

नशा


चीलों के घर ही मिले, बन्धु! अस्थियाँ-माँस।
खरगोशों का कुटुम्बी, कठिन बचानी साँस।।
द्वेष नहीं है रंच भी, अपनी अपनी राह।
मुँह तो केवल एक है, आह करे या वाह।।
मंचों की चिंता नहीं, कवि हूँ भाँड़ न मित्र।
केवल खुद के ही लिए, रचूँ शब्द के चित्र।।
नशा जरूरी है बहुत, करते सुर नर नाग।
बिना नशे पनपे नहीं, कोई रँग या राग।।
चाय और नमकीन भी, सबको नहीं नसीब।
हम बस उससे काम लें, जो भी मिले करीब।।
ठग भी हुए हबीब हैं, रहा नहीं एतबार।
बैलगाड़ियाँ दे गए, ले गए मोटर कार।।

गुरुवार, 3 नवंबर 2022

ओ कुड़ी तू मुझसे पट

आपने हाँक लगाकर सामान बेचने वालों को देखा ही होगा। क्या कलात्मक ढंग से आवाज लगाकर अपने ग्राहक को केन्द्र में रखते हैं कि बस ग्राहक मना नहीं कर पाता। दूसरी ओर प्रेमी जन होते हैं बड़ा भावविभोर होकर प्रणय निवेदन करते हैं बेचारे पिटते पिटते बच जाते हैं, कभी पिट जाते हैं और कभी उनके वो पट जाते हैं। मेरा क्या होगा राम जाने? मैंने तो पहले वाली युक्ति ही उचित समझी। आनन्द के लिए मैंने लिखा आनन्द के लिए आप पढ़ें। मस्तिष्क को थोड़ी देर के लिए छुट्टी दें। 

आजूबाजू वाले छड, 
ओ! कुड़ी तू मुझसे पट!
नहीं सोच मैं पका हुआ हूँ,
नर्म डाल पर टँगा हुआ हूँ,
अब तक टपका नहीं अगर मैं, 
तेरी खातिर रुका हुआ हूँ।
एक बार तो मुझको चख,
मैं झट से जाऊँगा कट।।
ओ! कुड़ी तू मुझसे पट!
कुछ न करे तो यहीं खड़ी रह,
फोटो जैसे फ्रेम जड़ी रह,
आँखों की राहों से घुस जा,
दिल के बेड पर सदा पड़ी रह।
मैं भी बिल्कुल नहीं हिलूँगा,
रसिक प्रिये! मैं भी उद्भट।।
ओ ! कुड़ी तू मुझसे पट!
शरद-ग्रीष्म की चिंत नहीं कर,
केवल अपना चित्त सही कर,
चलो प्रेम का वित्त बढ़ायें,
ना ना कर मति नहीं दही कर।
खा लेना तू चाउमीन भी,
अभी न भूखी जा मरघट।
ओ ! कुड़ी तू मुझसे पट!