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शनिवार, 7 मई 2022

सिनेमा दिखउतीं

बियाहिन से गहिरी कुंवारी लगउतीं।
लिपिस्टिक ते होंठन की यारी दिखउतीं।।
न सिर पर दुपट्टा न सीना ढके हैं,
निलज तारिका सी सिनेमा दिखउतीं।।
न अम्मा न बप्पा न बहिनी न भैया,
सिरिफ दोस्तन संग रिश्ता निभउतीं।।
मुहब्बत का फीवर चढ़ा तन व मन पर,
अगर कुछ कहौ आधुनिकता बतउतीं।।
गजब वक्त के रंग अजबइ गजब हैं,
फिसलने को अपने तरक्की जतउतीं।।
तुम्हैं लगि रहो हम गलत कहि रहे हइं।
कहति हम तुम्हैं सबसे जादा सतउतीं।।

6 टिप्‍पणियां:

  1. पर आपके ब्लॉग पर पाठकों की अनुपस्थिति से दुःख हुआ | कई मुद्दे ऐसे हैं जिन पर पाठकों के विचार जरूरी थे |

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    1. मैं इस बारे में नहीं सोचता क्योंकि मैं ही बहुत से ब्लॉगों पर नहीं पहुँच पाता।

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  2. यूँ तो ज्यादा समझ नहीं आया पर लगता है,किसी ( प्रचंड)आधुनिका का महिमामंडन किया है आपने 🙂🙏

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    उत्तर
    1. 😀😀😀 आजकल यह आम हो रहा है। किसी शादी वगैरह के फंक्शन में हमारे जैसे पुराने खयाल वालों की बड़ी समस्या है।

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