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रविवार, 7 मार्च 2021

होरी ढिंगै लगी

ऐसिउ का रिस लागि सखे तुम फागुन आयो भुलाइ न पायेउ।
काहे सताइ रहे उनका जिनसे कबहूँ अपनापन पायेउ।
हेरि हिये गलती सब मानिबि द्वारे भले मोरे आयेउ न आयेउ।
होरी ढिंगै लगि द्वेष न केहू से चित्त फटै वह होरी न गायेउ।।

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 07 मार्च 2021 को साझा की गई है........."सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. होली के रंग में सारी भाषाएँ रंगों में ही सराबोर लगती हैं ।
    कुछ समझ आया कुछ नहीं । फिर भी होली तो है न । शुभकामनाएँ।

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    1. हार्दिक आभार बहन, जो समझ नहीं आया उसके लिए क्षमा याचना। नमन।

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