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रविवार, 21 फ़रवरी 2021

दया कर प्रभू

क्या गजब ढा रहीं बाल रंगीन कर!
है बुढ़ापा जवानी चलींं छीनकर।।1।।
हमने केशों को सनई ही रहने दिया,
एक रुपया अठन्नी रखीं तीन कर।।2।।
थे धनी हम बहुत ये जगत जानता,
इस गली से गईंं तो हमें दीन कर।।3।।
जब से जालिम अधर मिर्च सूखी हुए,
तब से जेबों में यादें भरींं बीनकर।।4।।
रात तब से हिमालय हुई मित्रवर!
जबसे यौवन गया मेरी तौहीन कर।।5।। 
कोई चक्कर चला कुछ दया कर प्रभू!
एक दिन जो रहा फिर वही सीन कर।।6।।

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