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शुक्रवार, 8 मई 2020

गुलब्बो

मेरी गुलब्बो गेह के बाहर नहीं निकली।
महसूस खुद को कर रही है नाचती तकली।
राहें कोरोना बन्दकर बैठा रहा लेकिन,
आ ही गयी है ख्वाब में स्वच्छन्द ज्यों तितली।
गुल्ब्बो

4 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर। मुक्तक के साथ चित्र का भी उपयोग करें।

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    1. ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद, भविष्य में ध्यान रखूँगा| दरअसल चित्र के साथ कॉपीराइट की समस्या रहती है इसलिए चित्रों के प्रयोग से बचता रहता हूँ|

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