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मंगलवार, 25 फ़रवरी 2020

देवासुर संग्राम

जिन्हें घृणा बिखरानी जग में उन्हें घृणा बिखराने दो|
अपना उर है प्रेम खजाना लुटता है लुट जाने दो|
भले-बुरे से जग निर्मित है, साधू हैं शैतान भी हैं|
देवासुर संग्राम सतत यदि ठनते हैं ठन जाने दो||1||
रातें अनगिन झेलीं हमने कोई नई रात है क्या?
सदा म्लेच्छों टकराये कोई नई बात है क्या?
जहाँ गये नफरत फैलाई हुआ कलेजा ही पत्थर,
पत्थर उनके हाथ में होना कोई नई बात है क्या?
९१९८९०७८७१

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