आजकल #बनारस-हिंदू-विश्वविद्यालय में #प्रो0-फिरोज-खान की नियुक्ति को लेकर काफी विवाद चल रहा है। कुछ लोग पक्ष में तो कुछ लोग विपक्ष में खड़े हैं। मैं चुप नहीं रह सकता। बन्धु सत्य यह है कि यदि प्रो0 फिरोज खान की नियुक्ति संस्कृत पढ़ाने को लेकर हुई होती तो कोई बात नहीं थी किन्तु नियुक्ति धार्मिक शिक्षा देने के लिए हुई है जो बिल्कुल अनुचित बात है। प्रश्न धर्म के प्रति निष्ठा का है। क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति से जिसकी निष्ठा दूसरे धर्म में है अपने धर्म की शिक्षा विशेषकर कर्मकांड की शिक्षा लेना पसंद करेंगे? निश्चित रूप से नहीं। मुझे इस प्रश्न का भी जवाब चाहिए कि धर्म निरपेक्षता का ठेका क्या हिन्दू के ही जिम्मे है। अगर अगले 25 वर्षों में भी किसी मस्जिद या मदरसे में धार्मिक शिक्षा देने के किसी हिन्दू स्वीकार कर लें तो कल से मैं इस्लाम की तालीम हासिल करना शुरू कर दूँ। मुझे मालूम है आप ऐसा नहीं कर पायेंगे।
मैं भुक्तभोगी हूँ। 4 वर्ष पूर्व जब ग्राम पंचायत के चुनाव हुए थे तो शाहाबाद के पास मुस्लिम बहुल आबादी का एक गाँव है कठमा। वहाँ मैंने जिला पंचायत सदस्य के प्रत्याशी के रूप में अपनी अनुज वधू श्रीमती गीता शुक्ला के प्रचार के लिए इस गाँव में पोस्टर लगवाए थे। अगले दिन जब मैं गाँव में दुबारा गया तो मैंने देखा कि सभी पोस्टर फाड़े जा चुके थे। मैंने जानकारी की तो दबी जुबान में दो चार बुजुर्गों ने बताया कि ये कुछ लौंडों की करामात है। उन्होंने पोस्टर इसलिए फाड़ डाले कि उसपर राम दरबार का चित्र बना था। कहाँ गयी दूसरों के भी धर्म का सम्मान करने की भावना?
धर्म निरपेक्ष होने का मतलब यह नहीं होता कि दूसरे के धर्म में टाँग अड़ाई जाये। धर्म निरपेक्ष होने का मतलब है जो जिस धार्मिक आस्था के साथ है उसे उस आस्था के साथ रहने दिया जाए। आखिर मुझे कोई दिक्कत नहीं होती जब सुबह सुबह अजान के स्वर कानों में पड़ते हैं बल्कि नींद समय से खुल जाती है अपने परमपिता परमात्मा का ध्यान हो जाता है और मैं इसके लिए अजान देने वाले का तहेदिल से शुक्रगुजार होता हूँ। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं उसकी यह अजान अपने घर की ड्यौढ़ी पर पसंद करूँ।
बी एच यू के जिस विभाग में प्रोफेसर साहब की नियुक्ति हुई है वह शिक्षा विभाग नहीं मन्दिर है साहब। वहाँ किसी अन्य धर्म के व्यक्ति की नियुक्ति किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है।
इस ब्लॉग के अन्य पृष्ठ
कक्षा के अनुसार देखें
रविवार, 24 नवंबर 2019
प्रो0 फिरोज खान
बुधवार, 13 नवंबर 2019
हिंदुस्तान भी
राम का नाम रहे औ' रहे अजान भी।
गूँजे कुरान और गीता का ज्ञान भी।
हृदयों को जीतकर हम हो गए हिन्दू।
प्रीति पूरी धरा से प्यारा हिंदुस्तान भी।
9198907871
दिलों के बीच
दिलों के बीच भी सरहद होती है,
जिसकी ऊँचाई बेहद होती है,
बन तो बहुत जल्दी जाती है,
किन्तु न मिटने की जिद होती है।
मंगलवार, 12 नवंबर 2019
मराठी मानुस
महत्वाकांक्षा इतनी बड़ी हो गई कि जनता का निर्णय सिर के बल खड़ा हो गया। सबसे बड़ी पार्टी होकर भी बीजेपी महाराष्ट्र में सरकार नहीं बना पाई। शिवसेना गठबंधन धर्म नहीं निभा पाई और नौबत राष्ट्रपति शासन की आ गयी। मुझे यह समझ में नहीं आता कि जो इलेक्शन की नौटंकी जनता के पैसे से खेली गई उसकी भरपाई कौन करेगा।
जाहिर है जब गठबंधन को स्पष्ट बहुत मिला तो उसे दोष नहीं दे सकते। मेरी समझ से यदि बहुमत प्राप्त करके भी कोई दल सरकार न बना पाएं तो उस दल के सभी जीते विधायकों की सम्पत्ति जब्त करके उनके पुनः चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए।
राष्ट्रपति शासन ही लगना था तो जनता तो ठगी गयी। संविधान निर्माताओं ने कल्पना भी न की होगी कि सत्ता की चाहत एक दिन देश हित से बड़ी हो जाएगी।
थू है उनपर जो अपने को जनता का सेवक कहकर वोट झटकते हैं और इलेक्शन के बाद जब सत्ता की मलाई हाथ नहीं आती तो अपने कर्तव्य से हट जाते हैं। वाह रे मराठी मानुस। धिक्कार है!