महत्वाकांक्षा इतनी बड़ी हो गई कि जनता का निर्णय सिर के बल खड़ा हो गया। सबसे बड़ी पार्टी होकर भी बीजेपी महाराष्ट्र में सरकार नहीं बना पाई। शिवसेना गठबंधन धर्म नहीं निभा पाई और नौबत राष्ट्रपति शासन की आ गयी। मुझे यह समझ में नहीं आता कि जो इलेक्शन की नौटंकी जनता के पैसे से खेली गई उसकी भरपाई कौन करेगा।
जाहिर है जब गठबंधन को स्पष्ट बहुत मिला तो उसे दोष नहीं दे सकते। मेरी समझ से यदि बहुमत प्राप्त करके भी कोई दल सरकार न बना पाएं तो उस दल के सभी जीते विधायकों की सम्पत्ति जब्त करके उनके पुनः चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए।
राष्ट्रपति शासन ही लगना था तो जनता तो ठगी गयी। संविधान निर्माताओं ने कल्पना भी न की होगी कि सत्ता की चाहत एक दिन देश हित से बड़ी हो जाएगी।
थू है उनपर जो अपने को जनता का सेवक कहकर वोट झटकते हैं और इलेक्शन के बाद जब सत्ता की मलाई हाथ नहीं आती तो अपने कर्तव्य से हट जाते हैं। वाह रे मराठी मानुस। धिक्कार है!
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