अभी तो किसी दिन आधी रात को आवाज गूँजनी बाकी है, मेरे प्यारे भाइयों, देश की सभी बैंकों में जबरदस्त घाटा हुआ है उद्योग व्यापक मंदी के शिकार हैं, और सरकार मदद कर पाने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि RBI का रिजर्व हम पहले ही खर्च कर चुके हैं। आप सब इस देश के भक्त हैं आपको धैर्य रखना होगा जब तक बैंकें अपना कारोबार बेचकर उबर नहीं जातीं तब तक आप सरकार का साथ दें। आप स्वेच्छा से बिल्कुल सब्सिडी की तरह देश हित में अपनी बैंक जमा बैंकों में ही रहने दें। अगर आप अपना पैसा लेने भी जायेंगे तो बैंक आपको अधिकतम एक लाख की ही वापसी करेगी और कोई कोर्ट आपकी मदद नहीं करेगी। हममें से बहुतों को नहीं पता आपात स्थितियों मैं आपको सिर्फ एक लाख का रिस्क कवर देती है आपका फालतू जमा बैंक व सरकार की मर्जी पर है।
मेरी समझ में यह नहीं आता कि कोई बैंक अपनी असावधानी या अपने भ्रष्ट अधिकारियों व कर्मचारियों के कारण मेरा पैसा खतरे में कैसे डाल सकती है। एक समय था जब बैंक अपने निवेशकों को पर्याप्त रिटर्न देती थी। ग्राहक बैंक कर्मचारियों पर विश्वास करता था। किन्तु पिछले 20 वर्षों में ग्राहक अपनी ही जमाओं के लिए लम्बी लम्बी लाइनों में खड़ा होता है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र की शाखाओं में दलालों का बोलबाला है। खाता खुलवाने में टालमटोल, केवाईसी के नाम पर उत्पीड़न, पासबुक प्रविष्टि के लिए कभी स्टाफ की कमी, कभी प्रिंटर की समस्या तो कभी नेटवर्क की, कभी कैश की कमी का रोना इत्यादि अनन्त समस्याएं हैं। जिनसे अर्द्धशिक्षित जनता प्रायः जूझती है। बैंक कर्मचारियों को और व्यवस्था को गालियाँ देती है।
जब से विभिन्न प्रकार की योजनाओं का पैसा बैंक के माध्यम से मिलने लगा है तब से कुछ बैंक कर्मचारी बेइमान भी हो चले हैं। ग्राहकों के साथ बेइमानी तो करते ही हैं अपने मिशन व देश से भी गद्दारी करने लगे हैं। आखिर कौन नहीं जानता नोटबंदी बैंकों के भ्रष्टाचार के कारण ही बेअसर हो गई और पब्लिक परेशान हुई सो अलग।
बात करें निजी बैंकों या गैर बैंक वित्तीय संस्थाओं की तो उत्तर प्रदेश में सहारा बैंक ने बहुतों को बेसहारा कर दिया। PMC बैंक का भट्ठा बैठना तो बिल्कुल ताजा उदाहरण है।
आखिर सरकार कब जागोगी और बैंकों की विश्वसनीयता लौटेगी? इसकी प्रतीक्षा रहेगी।
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