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रविवार, 21 अक्टूबर 2018

नजर से गई

बहुत दिनों के बाद जिसे मैं कविता कहता हूँ प्रस्तुत कर रहा हूँ।

शराफत शरीफों के घर से गई,
हवेली हमारी नजर से गई।।
कहाँ कौन शातिर बताये भला,
चमन छोड़ चिड़िया किधर से गई।।
करूँ वायदा फिर से मुमकिन नहीं,
अभी पीर पिछली जिगर से गई।।
परेशान रातों की चुभती घुटन,
बहुत वक्त बीता उमर से गई।।
गजल क्या कहूँ शून्य में रम गया,
कलर की कसौटी कमर से गई।।
विमल कुमार शुक्ल'विमल'

कृपया पोस्ट पर कमेन्ट करके अवश्य प्रोत्साहित करें|

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-10-2018) को "दुर्गा की पूजा करो" (चर्चा अंक-3133) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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