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शनिवार, 26 मई 2018

ओ! मतवाली


18/05/2018
आलिंगन की बेला थी तब दोनों खोये|
यौवन के घमण्ड में भरकर मुड़ मुड़ रोये|
निशा गयी प्राची में ऊषा झांक रही है|
तब क्यों मुझसे भीख प्रणय की माँग रही है|
विषय वासना के क्षण बीते ओ! मतवाली|
शैय्या तज दे सुबह हुई फैली उजियाली|
मेरे तेरे मध्य न दालें गलने वाली|

जब उपवन में भँवरों की गुंजार प्रबल थी|
कली कली आह्लादकारिणी पुष्ट सबल थी|
नवपल्ल्व निज छाया से दुलराने वाले|
कर फैला तत्पर प्रसून स्वागत मतवाले|
निकल गया अनबूझ पथिक सा दृष्टि न डाली|
अब क्या तेरे दर पर लेने आऊँ माली|
तेरी झोली मेरी झोली दोनों खाली|

तू भी भोला मैं भी भोला दोनों भोले|
तू शीतल ज्यों बर्फ शिला मैं जैसे ओले|
बहुत बार मन्दिर में हमने नैन मिलाये|
बातें छौंकीं सुख दुःख बाँटे अवसर पाये|
मन की प्यास कहाँ बुझ पाई युग युग पाली|
रीती गागर तू जाने कब भरने वाली|
बन्जर उर में भी मनमोहन कर हरियाली|







कृपया पोस्ट पर कमेन्ट करके अवश्य प्रोत्साहित करें|

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (28-05-2018) को "मोह सभी का भंग" (चर्चा अंक-2984) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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    उत्तर
    1. धन्यवाद बहन मेरी प्रसार क्षमता बढ़ाने के लिए व रचना को अपने ब्लॉग पर शेयर करने के लिए

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