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गुरुवार, 26 अप्रैल 2018

रेप समस्या व समाधान हेतु विमर्श



लिखना तो बहुत दिनों से चाहता था किन्तु लिखा नहीं| जैसे ही मोदी सरकार ने रेपिस्टों के खिलाफ कठोर कानून बनाया कि नाबालिग से रेप करने वाले को फाँसी की सजा दी जायेगी व अन्य में अधिकतम सजा उम्रकैद होगी तो मैं अपने को लिखने से रोक नहीं पाया|
रेप अत्यधिक निन्दनीय कृत्य है, किसी भी समाज के लिए कलंक है, किसी भी रूप में स्त्री अस्मिता से खिलवाड़ एक सभ्य समाज में त्याज्य होना चाहिए| रेप से रेप पीड़िता को व उसके परिवार को गहरा मानसिक, सामाजिक, पारिवारिक व आर्थिक आघात पहुँचता है| अपूरणीय क्षति होती है जिसकी भरपाई कई पीढ़ियों बाद भी सम्भव नहीं होती| कभी कभी पीड़िता व उसके परिवार का समापन हो जाता है जोकि एक सामाजिक क्षति है| अतः ऐसे प्रबन्ध होने चाहिये कि ऐसी घटनाएं न हों| आसाराम काण्ड, निर्भया काण्ड, कठुआ काण्ड, उन्नाव की घटना व अन्यान्य रेप की घटनायें उस प्रथम श्रेणी के अपराध हैं जहाँ अपराधी को कठोरतम दण्ड दिया जाना आवश्यक है| ऐसे कानून का हृदय से स्वागत है|
रेप को रोकने के लिए कठोरतम सजा का यह कानून इतना कामयाब होगा यह समय बतायेगा, मैं यहाँ कानून के औचित्य या अनौचित्य पर विचार नहीं कर रहा क्योंकि किसी भी विषय पर सबके अपने-अपने तर्क कुतर्क होते हैं| मेरा प्रश्न यह है कि क्या कभी हमने इस सन्दर्भ में मनुष्य की प्रकृति व उसकी आवश्यकताओं को समझने का प्रयास किया है? क्या रेपिस्ट की मनोवृत्ति का मानवीय या चिकित्सकीय दृष्टिकोण से भी विचार करने का प्रयास किया है? क्या रेप जैसे अपराध की अन्य अपराध से कोई तुलना है? इन प्रश्नों के उत्तर दिया बिना कोई भी कानून अल्पमात्रा में ही प्रभावी होगा|
आप सबने ट्रेनों के, अस्पतालों के व सार्वजनिक शौचालयों के दीवारों पर लिखे हुए स्लोगन व विचार पढ़े होंगे| मैं सिर्फ स्लोगनों की चर्चा करूँगा| वैसे आपने कंडोम और बैंगन जैसी चीजें भी शौचालयों में पायी होंगी| ये वहाँ क्या कर रहीं थीं कहने की आवश्यकता नहीं| आप स्वयं बहुत समझदार हैं|
स्लोगन जिन्हें पढ़ने में लज्जा आती है लिखने वाले को नहीं आई| क्यों? क्योंकि वे बीमार या  विक्षिप्त लोगों के द्वारा लिखे गये थे| ये स्लोगन उनके हृदय की अतृप्त वासनाओं की अभिव्यक्ति थे, जिन्हें कदाचित वे इसी सर्वोत्तम प्रकार से तृप्त कर सके| क्या आपको पता है जिस समय आप स्लोगन पढ़ रहे थे आपका मानसिक बलात्कार हो चुका था? उन्हें वह सॉफ्ट टारगेट नहीं मिला या फिर उन्हें किसी भय ने रोक दिया जहाँ वे अपनी वासना की पूर्ति करते| कठोर सजा प्रायः इन्हीं पर प्रभावी है जो बेचारे पहले से ही डरे हैं, किसी सार्वजनिक स्थल पर लड़कियों की ओर देखने से भी डरते हैं|
उनका क्या जो मानसिक रूप से इस बात के लिए सक्षम होते हैं कि आत्महत्या कर लें या किसी की हत्या कर दें कठोर सजा उन्हें कैसे रोकेगी| ध्यान दें रेपिस्ट किसी बच्ची, युवती या वृद्धा का बलात्कार नहीं करता वह बालिग या नाबालिग का भी विचार नहीं करता उसके सामने तो जो भी सॉफ्ट टारगेट आ जाता है, जिसमें वह स्वयं को सक्षम पाता है उसका शिकार कर लेता है| ये द्वितीय प्रकार के बलात्कारी हैं| यह भी देखा जाता है कि बालिग हों या नाबालिग इश्क पर जोर नहीं, सामाजिक खुलेपन के दौर में दोस्ती प्यार में और प्यार कब विवाह पूर्व सम्बन्धों में बदल जाता है पता ही नहीं चलता| विचार मिले या स्वार्थ सिद्ध हुए और विवाह हो गया तो ठीक वरना झेलो| ऐसे में प्रायः हानि में पुरूष ही रहता है चाहे वह बालिग हो नाबालिग| ये तीसरे प्रकार के बलात्कारी हैं| चौथे प्रकार के बलात्कारी वे हैं यद्यपि नगण्य हैं, जहाँ स्त्रियों ने ही शारीरिक सम्बन्ध बनाने के लिए दबाव डाला हो (लेखक ऐसे ही एक बलात्कारी से कई वर्ष पूर्व मिल चुका है और उससे सहानुभूति रखता है) और जब भेद खुल गया तो सारा दोष पुरुष पर मढ़ दिया|
लेखक की चिन्ता अंतिम तिन प्रकार के बलात्कारियों के सन्दर्भ में है| यह तीनों ऐसे हैं जिनके प्रति मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है तथा यह भी ध्यान रखना है कि प्रथम प्रकार के बलात्कारी बचने न पायें|
मैंने आयुर्वेद के वेग-विधारण से सम्बन्धित चैप्टर में विभिन्न प्रकार के वेग पढ़े हैं-श्वास, कास, हिक्का, जृम्भा, छींक, मल, मूत्र, प्यास, भूख व अन्य के साथ एक पढ़ा है मैथुनेच्छा| यह भी कि शरीर में उपस्थित ये वेग बलात रोके जाने पर रोग उत्पन्न करते हैं और कुछ कभी कभी मृत्यु का भी कारण होते हैं| मैथुन के लिए तो व्यक्ति बहुत बार अप्राकृतिक व कृत्रिम साधनों का भी सहारा ले लेता है| हमारे तमाम पाठक स्त्री हों या पुरुष सभी ने कभी न कभी किसी न किसी साधन को अपनाया होगा| अतः साधनों के बारे में लिखने की आवश्यकता नहीं| आवश्यकता इस प्रश्न की है मनुष्य की इस नैसर्गिक इच्छा की पूर्ति के कितने प्राकृतिक साधन उपलब्ध हैं हमारे देश में विशेषकर यदि पुरुष अविवाहित हो तो| अब ऋषियों व ब्रम्ह्चारियों का देश तो रहा नहीं| यहाँ तो साधू भी जेल में हैं ऋषि पराशर बनने के चक्कर में| हमारे यहाँ तो वेश्यावृत्ति भी अवैधानिक है|
एक तरफ प्रचार होता है कि कंडोम का प्रयोग करें और सुरक्षित सम्बन्ध बनाएं दूसरी तरफ कहो महात्मा हो जायें यह कैसे चलेगा| फिर आज वासनाओं को भड़काने के लिए मोबाइल पर तमाम वीडियोज, फोटोज, शेरो-शायरी-कहानियाँ व पोर्न साइटें हैं| यहाँ तक कि पारिवारिक चैनलों में भी आज वह सामग्री दिखाई जा रही है जो कुछ समय पूर्व तक सिर्फ एडल्ट फिल्मों में दिखाई जाती थी| मेरी समझ से इन सब पर भी रोक लगाने की आवश्यकता है| जहाँ तक बलात्कार से जुड़ी हत्याओं का प्रश्न है तो वह वास्तव में एक अपराध को छिपाने के लिए किया गया गौण अपराध है|
मेरे हिसाब से तो पहले विश्व के उन समाजों का अध्ययन करना चाहिए जहां न्यूनतम बलात्कार होते हों और तदनुरूप भारतीय समाज को शिक्षित करने का कार्य होना चाहिए|
टीवी चैनलों व फिल्मों में वह नहीं दिखाना चाहिए जो लोग देखना चाहते हैं वह दिखाना चाहिए जो समाज के लिए हितकर हो विल्कुल रोगी के लिए कटु औषधि की तरह| सेंसर के मानक कड़े होने चाहिए अन्यथा सभी प्रयास निष्फल हो जायेंगे| हमें इस सम्बन्ध में सम्पूर्ण समाज की मानसिकता को शुद्ध करने पर ध्यान देना होगा| वास्तविकता यह है कि कहीं न कहीं हम सब बलात्कारी हैं कोई तन से तो कोई मन से| यदि हम विद्यालयों में यौन शिक्षा की वकालत करेंगे, बालक बालिकाओं की स्वच्छन्दता को आधुनिकता समझ लेंगे, पर स्त्री-पुरुषों का सामीप्य आज की जरूरत समझकर चलने देंगे तो बलात्कार होंगे| भले ही शारीरिक नहीं तो मानसिक| ऐसे वातावरण के निर्माण की आवश्यकता है जहाँ मानसिक रूप से भी लोग सच्चरित्र बनें, भृष्टाचार मुक्त बनें, शीलवान बनें| ये सभी चीजें साथ साथ हैं|
 



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बुधवार, 25 अप्रैल 2018

मजाक

आज समाचार छपा है कि जनधन खातों से अब 24 घण्टे के लिए 5000 हजार का कर्ज बिना ब्याज लिया जा सकता है। अब किसी गरीब से इतना भद्दा मजाक भी अच्छा नहीं। भला 24 घण्टे के लिए 5000 रुपये का कर्ज लेने कितने लोग जायेंगे। ऐसा कौन सा बिजनेस जिसे व्यक्ति एक दिन के लिए करेगा। उदाहरण दिया गया है कि कोई सुबह बैंक से पैसा लेकर मान लो दोपहर में पकौड़े बेचता है तो खाली हुआ पैसा वह शाम को जमाकर दे ब्याज नहीं लिया जायेगा। इसी प्रकार शाम को कर्ज लेकर सुबह जमा कर सकता है। लेकिन साहब बिजनेस लगातार प्रक्रिया है अगले दिन फिर उसी पैसे की आवश्यकता होगी तो क्या करेगा। दूसरी बात कि इस दौरान बैंक कितना समय चबा जाएगी। तीसरी बात यदि व्यक्ति अत्यधिक निर्धन या बेईमान नहीं है तो 5 हजार रुपये तो 2 चार दिन के लिए किसी नातेदार रिश्तेदार मित्र से ले लेगा बिना ब्याज हफ्ते 15 दिन के लिए बैंक में  क्यों लाइन लगाएगा। चौथे ग्रामीण क्षेत्रों के जो बैंक लोगों को अपना पैसा निकालने के लिए 4-6चक्कर लगवा देते हैं वे ओवर ड्राफ्ट की सुविधा किस प्रकार प्रदान करेंगे । पांचवा लोगों के शोषण की भी सम्भावना है।
बेहतर होगा कम से कम यह लोन 1 माह के लिये तो मिले ही ताकि व्यक्ति कम से कम रोजगार को चला तो सके निश्चिंत होकर।

रविवार, 22 अप्रैल 2018

प्रेम की लौ

हो सके तो प्रेम की लौ खुद जलाइए।
यूँ नहीं इल्जाम ये हम पर लगाइए।
खत अनेकों लिख लिए हैं तेरे वास्ते।
किस पते पर भेज दूँ इतना बताइए।

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018

प्रेम

हर किसी के वास्ते ठहरा नहीं जाता।
टोटकों से प्रेंम सच गहरा नहीं जाता।
नेह उर  में हो अगर स्वारथ रहित प्यारे,
तो हृदय में बस गया चेहरा नहीं जाता।।

गुरुवार, 12 अप्रैल 2018

बैशाखियाँ

हो लिया है बन्द भी और हो लिया उपवास भी|
हानि में है देश क्या कुछ शेष है उपहास भी|
खिंच गये पाले हमारे दो करों के मध्य में,
हम हो गये हैं एक सँग प्रसन्न भी उदास भी|

दी गयीं बैशाखियाँ थीं दस बरस के ही लिए,
जो थे लंगड़े उनकी संख्या में कमी आई नहीं,
स्थिर व्यवस्था हो गयी है नफरतों के साथ में,
क्या कहूँ मैं दिख रहा है लुंजपुंज विकास भी|



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अंकित, अनीस, अनिकेत



गंगाघाट की सीढियों पर बैठे हुए संजय मानो गंगा माँ में तैरते व हिचकोले खाते हुए दीपों की गिनती कर रहा था| अभी सूरज ठीक से अस्त नहीं हुआ था, किन्तु हर की पैड़ी पर होने वाली गंगा आरती में भाग लेने के लिए आने वाले श्रद्धालुओं का जमघट लगना शुरू हो गया था| संजय भी आरती में भाग लेने के लिए सुविधानुसार सीढ़ियों पर एक स्थान पर आसन जमा चुका था| तभी अचानक एक हाथ उसके सामने फैला| बाबू जी इस भूखे साधु को भी एक चाय पिला दो| संजय जैसे नींद से जागा उसे यह स्वर जाना पहचाना सा लगा| उसने सिर ऊपर उठाया तो ऐसा लगा जैसे इसे कहीं देखा हो| दुबारा फिर वही स्वर गूँजा| बाबू जी इस भूखे को एक चाय पिला दो| सामने एक गेरुआ भेषधारी साधू दिखाई पड़ा| यद्यपि उसने जटायें व दाढ़ी-मूँछे इत्यादि बढ़ा रखीं थीं किन्तु संजय अपने मित्र को तुरन्त ही पहचान गया, “अंकित! तुम यहाँ|” “कौन अंकित, मैं अंकित नहीं हूँ| मैं स्वामी अनिकेत हूँ|” और इसी के साथ बड़ी तत्परता से वह साधुवेशधारी वहाँ से खिसक लिया|
अंकित! अंकित! की आवाज देता हुआ संजय भी अपने स्थान से उठकर उसके पीछे चला| किन्तु संजय अधिक दूर तक उस साधुवेशधारी का अधिक दूरी तक पीछा न कर सका और वह साधु भी उसी भीड़ में न जाने कहाँ गुम हो गया|
संजय जब रूका तो ठठाकर हँसा, “हा! हा! हा! अंकित, अनीस, अनिकेत! अब जब मिलेगा तो कोई और नया नाम चस्पा होगा|” संजय जब लौटकर अपने स्थान पर आया तो सीढ़ियों पर जगह न थी| गंगा आरती प्रारम्भ हो चुकी थी, किन्तु उसका मन अब आरती में नहीं लग रहा था| अतः उसने सीधे होटल के कमरे में हो जाना उचित समझा|
कमरे में पहुँचकर उसने बेयरे को कमरे में खाना पहुँचाने का आर्डर दिया और अपनी जेब से पर्स निकालकर अपने जिगरी दोस्त अंकित के साथ खिंचाई हुई फोटो देखने लगा| उसे वह दिन याद आ रहा था जब संजय व अंकित सहपाठी हुआ करते थे| ग्रेजुएशन की उस क्लास में अंकित बड़ा ही होनहार छात्र था| कक्षा 10 व 12 की परीक्षायें उसने प्रथम श्रेणी में ससम्मान उत्तीर्ण कीं थीं और डिग्री कॉलेज में भी वह प्रशंसा का अधिकारी था| किन्तु जब किसी पर इश्क का भूत सवार होता है तो उसे पूरी तरह से मटियामेट कर देता है|
शकीला, हाँ यही नाम था उसका जिससे उसे प्यार हो गया| शकीला भी उसे चाहती थी| छुपते छुपाते होने वाले मेलजोल के चर्चे कॉलेज के लडके लडकियों के मुँह-कान से होते हुए उनके घर परिवारों तक भी पहुँच गये| जिस दिन उन दोनों को यह पता चला कि उनका कथानक जग जाहिर हो गया है दोनों ने फैसला कर लिया कि वे आपस में शादी कर लेंगे, किन्तु क्या यह इतना सरल था? सबसे बड़ी बाधा धर्म-मजहब तो बीच में पहाड़ की तरह खड़े ही थे वह भी बहुत दुर्गम व जानलेवा|
दोनों के घर परिवार वाले समझा रहे थे कि यह बेमेल विवाह है धर्म व मजहब से बाहर जाकर किया गया यह सम्बन्ध किसी को स्वीकार्य नहीं होगा| किन्तु कौन मानता है? अंततः अंकित के घर-परिवारवालों ने कलेजे पर पत्थर रखा और जीते जी अंकित को मरा मानकर उसे अपने परिवार से बहिष्कृत कर दिया| उस दिन से कॉलेज का हॉस्टल ही अंकित का घर संसार हो गया|
उधर जब शकीला किसी भी तरह से अंकित को छोड़कर विवाह के लिए राजी न हुई तो मुल्ला और मौलवियों ने फरमाया अगर अंकित इस्लाम धर्म स्वीकार कर ले तो उसका निकाह शकीला से पढ़वाया जा सकता है| शकीला के अब्बू ने मुशीर को अंकित के पास भेजा और सारी बात कहलवायी| अंकित ने कुछ भी आगा पीछा विचारा नहीं और इस्लाम कुबूल करने को अपनी रजामंदी दे दी| अगले ही दिन अंकित को मस्जिद ले जाया जाया गया, उसका इस्लामिक संस्कार कराया गया और उसका नाम अंकित से बदलकर अनीस हो गया| कुछ ही दिन बाद बड़ी धूमधाम से अंकित उर्फ़ अनीस का निकाह शकीला के साथ पढ़ दिया गया| ख़ास बात यह थी की विजय प्रेम की नहीं हुई अपितु अहंकार की हुई| इस विवाह को कुछ मुस्लिम युवाओं ने नगर भर में हिन्दुओं पर मुस्लिमों की विजय के रूप में प्रचारित किया|
बहरहाल निकाह के बाद जब वे दोनों कॉलेज पहुँचे तो कॉलेज के छात्र-छात्राओं व सहपाठियों की नजरें उन दोनों को ऐसे घूर रहीं थीं जैसे कोई जानवर कॉलेज में घुस आया हो| कॉलेज के लड़के-लड़कियों का व्यवहार अब उनके साथ पहले सा नहीं था| वे दूरियाँ बनाने लगे थे| पहले के पुराने दोस्तों के साथ उनका मेलजोल कम हो गया था| अनीस और शकीला शायद ही कभी समझ पाए होंगे कि जो लोग उनके प्रेम को सहन कर लेते थे वे अब उन दोनों का विवाह क्यों नहीं स्वीकार पा रहे थे?
धीरे- धीरे कॉलेज उन दोनों को अरुचिकर प्रतीत होने लगा था और एक दिन उन दोनों ने अपना ग्रेजुएशन पूरा किये बिना ही कॉलेज छोड़ दिया| उन्होंने महसूस कर लिया था कि कॉलेज के लड़के लड़कियाँ उन दोनों से यद्यपि कुछ न कहते फिर भी नजरों के व्यंग्य वाण उन पर सदैव चलाया करते, घृणा से देखते और उन दोनों को असहज कर देने वाली कानाफूसियाँ करते|
जब दोनों घर पर रहे तो अनीस ने पाया कि उसके हिन्दू मित्रों व रिश्तेदारों ने तो उससे दूरियाँ बना ही लीं थीं मुस्लिम जन भी उसे अपने मध्य सम्माननीय स्थान देने को तैयार प्रतीत न होते थे| उधर शकीला व उसके परिवार के लोगों को मुस्लिम समाज का एक वर्ग उपेक्षा से देखता था और एक हिन्दू से अपनी लड़की का निकाह पढ़वा देने पर जब तब आलोचनायें कर देता था| मुहल्ले व रिश्तेदारी की हमउम्र लड़कियों को उनके माँ बाप प्रायः उन्हें शकीला से दूरी बनाये रखने की हिदायत देते रहते थे| ऐसे में दोनों दीन-दुनिया से जैसे अलग-थलग पड़ गये थे| तमाम लानतों-मलानतों के बीच अंकित उर्फ़ अनीस ने चार साल किसी तरह गुजारे| शकीला को उससे दो संतानें हुईं दोनों लड़कियाँ| जिस रात को छोटी लड़की का जन्म हुआ उस सुबह के बाद फिर अंकित उर्फ़ अनीस को किसी ने उस शहर में नहीं देखा न ही किसी को उसके बारे में कोई खबर ही मिली|
शकीला के अब्बू व मुशीर भाई दोनों ने उसके बारे में पता करने का बहुत यत्न किया किन्तु कोई खोज खबर न मिली| अंकित के परिवार वालों ने चूंकि उसे छोड़ ही रखा था अतः उसके बारे में कुछ भी पता करने की कोशिश न की| शकीला के अब्बू व मुशीर भाई ने बहुत प्रयास किया कि शकीला व उसके बच्चों को अंकित के परिवारवाले अपना लें किन्तु अंकित के पिताजी ने साफ साफ कह दिया कि विधर्मियों से उसका कोई सम्बन्ध नहीं हो सकता| यद्यपि शकीला के परिवारवालों ने इस्लामिक रीति के अनुसार शकीला के दूसरे विवाह का प्रयास किया किन्तु शकीला इसके लिए राजी न हुई|
तबसे अब तक अंकित उर्फ़ अनीस उर्फ़ अनिकेत की खोज जारी है|
रूम की घंटी बजी बेयरा खाना लाया था| संजय खाना खाने में व्यस्त हो गया|


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शुक्रवार, 6 अप्रैल 2018

ऊँचा नीचा

उसको थोड़ा ऊँचा कर दो इसको थोड़ा नीचा।
हम समान करके मानेंगे गद्दा और गलीचा।।
कोई सिर न झुकायेगा अब चाहेगा आशीष नहीं।
एक कुड़ी से नैन लड़ायें चाचा और भतीजा।।