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गुरुवार, 12 अप्रैल 2018

बैशाखियाँ

हो लिया है बन्द भी और हो लिया उपवास भी|
हानि में है देश क्या कुछ शेष है उपहास भी|
खिंच गये पाले हमारे दो करों के मध्य में,
हम हो गये हैं एक सँग प्रसन्न भी उदास भी|

दी गयीं बैशाखियाँ थीं दस बरस के ही लिए,
जो थे लंगड़े उनकी संख्या में कमी आई नहीं,
स्थिर व्यवस्था हो गयी है नफरतों के साथ में,
क्या कहूँ मैं दिख रहा है लुंजपुंज विकास भी|



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5 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (14-04-2017) को "डा. भीमराव अम्बेडकर जयन्ती" (चर्चा अंक-2940) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    उत्तर
    1. लिंक की चर्चा अपने ब्लॉग पर करने के लिए आभार|

      हटाएं