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शनिवार, 13 जनवरी 2018

अभिमन्यु



अर्जुन होना जीवन रण में नहीं बहुत आसान|
कृष्ण सारथी होंगे जिसके जिये वही मैदान|
जीवन के हर चक्रव्यूह का मैं ही द्रोणाचार्य|
निज वध को अभिमन्यु बनूं मैं इतना भी अनिवार्य|
उर में बचकानापन हावी बुद्धि अधूरा ज्ञान|
उतर पड़ा हूँ महासमर में क्या राखे भगवान?
 





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