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सोमवार, 15 जनवरी 2018

लोकतंत्र खतरे में


तुम रस्सी के उधर रहो, मैं रहूँ प्रिये उस ओर|
लोकतंत्र खतरे में पड़ गया, यही मचायें शोर|
लेखक या साहित्यकार बन, लौटा दें ईनाम|
या फिर जज बन कांफ्रेंस करें, पलटा दें हम्माम|


कृपया पोस्ट पर कमेन्ट करके अवश्य प्रोत्साहित करें|

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