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रविवार, 22 नवंबर 2015

दिल की धड़कन और हौसला




बच्चा बोलता है कि हमारे सर जी हमसे स्पीच इसलिये दिलवाते हैं कि हम लोगों का हौसला बढ़े। मेरी समझ में नहीं आता कि हौसला कैसे बढ़ता है। मैं जब स्पीच देने खड़ा होता हूँ तो मेरे सीने में यहाँ पर (उसने उंगली रखकर बताया) दर्द होता है और मेरे दिल की धड़कन बढ़ जाती है। ताऊ जी क्या हौसला बढ़ना इसी को कहते हैं। एक हँसी सी छूटी बच्चे की इस बात पर। एकबारगी तो लगा कि बड़ा बेतुका प्रश्न है? दिल की धड़कन का बढ़ जाना सच में हौसले का बढ़ना नहीं है। बच्चे ने फ़िर पूँछा कि क्या ताऊ जी इसी को हौसले का बढ़ना कहते हैं। लेखक बच्चे को क्या समझाता? बोला बड़ा अच्छा जोक सुनाया तुमने "तुम्हारे सर जी सोचते हैं तुम्हारा हौसला बढ़ा और तुम्हें लगा तुम्हारे दिल की धड़कन।
ऐसा प्रायः होता है रोजमर्रा की जिन्दगी में कुछ प्रश्न उछलते हैं। आखिर दिल की धड़कन बढ़ने का हौसले के बढ़ने से क्या सम्बन्ध है? लेखक को लगता है कि दिल की धड़कन का बढ़ जाना सीढ़ी का पहला डंडा है और हौसले का बढ़ना आखिरी। किसी भी कार्य को प्रथम बार करते समय ऐसा प्रतीत होता है कि कोई हमें ऑब्जर्व कर रहा है और प्रतिक्रिया कर सकता है तो वाकई हमारे दिल की धड़कन तेज हो जाती है। बहुत बार प्रतिक्रियायें ऐसी होती हैं जो केवल अपने दिल की धड़कन को ही नहीं बढ़ातीं बल्कि समाज की धड़कनों को भी बढ़ा देती हैं और हम कार्य करना बन्द कर देते हैं। किन्तु बहुत बार हमें ऐसी उत्साहवर्धक प्रतिक्रियायें प्राप्त होती हैं कि हमें लगता है कि अरे हम भी कुछ कर सकते हैं तो दिल फूलकर गुब्बारा हो जाता है और धड़कना भूल जाता है। यदि प्रतिक्रियायें बिल्कुल सामान्य हों तो भी दिल की धड़कन लगातार कब तक बढ़ सकती है। दिल भी समझ लेता है बेटा ये स्पीच तो रोज का काम है और प्रतिक्रियायें भी। तब दिल की धड़कनों को अपनी औकात पता चल जाती है और हौसला जन्म ले लेता है। स्पीच देने का हौसला कुछ काम करने का हौसला कि हमारे पास भी कुछ करने या कहने का मशाला है।
दिल संभाले संभलता नहीं



व्यवहार गणित सम्बन्धी किसी भी जिज्ञासा के समाधान के लिये लेखक को ईमेल करें। यथा सम्भव समाधान किया जायेगा।
vimalshukla14@yahoo.in





बुधवार, 30 सितंबर 2015

एक वो है



बन्दा चाँद पर गया है,
वहाँ काम चल रहा है।
किसी मुमताज का ताजमहल,
बन रहा है।
एक वो है जो दोनों जहाँ संभाले है,
मेरा दम तो,
जमीन पर ही निकल रहा है।

भौतिक विकास



एक चीज ही चुन पाओगे गन्ना गुड़ या शक्कर में।
थोड़ा बहुत छोड़ना होगा कुछ पाने के चक्कर में।
चाहे जितनी सेना हो उसके मुस्तैद सिपाही हों।
थोड़ी बहुत हानि निश्चित है भले विजय हो टक्कर में।
शाखें कटीं परिंदे रूठे  सूनी है आकाश धरा,
अवगुण बहुत भयानक हैं भौतिक विकास के अस्तर में।

बुधवार, 27 मई 2015

कमबख्त पेड़

मुझे पतझड़ का इन्तेजार रहता है।
चाँद तो आज भी उसी खिड़की पर है।
कमबख्त पेड़ है जो उग आया है।
मेरे उसके बीच किसी दीवार की मानिंद।
@विमल कुमार शुक्ल'विमल'

सोमवार, 27 अप्रैल 2015

यौवनभारगर्विता बाले!

संस्कृत हिंदी सहित अनेक भारोपीय भाषाओँ की जननी है। अपने इसी लगाव के तहत कभी कभार इस भाषा में काव्य रचना का प्रयास कर लेता हूँ। सुधी विद्वतजनों से प्रोत्साहन की आकांक्षा रहेगी।
26/04/2015
ऐ! बाले! त्वंकथमट्टाले केशप्रशाधयितुं तल्लीना।
गृहम् विशालं तव हे सुमुखे! किं त्वं कुलं कुटुम्बम् हीना।
कस्मै अलक संजालं क्षेपस्यसिवीथी हिंस्र जन्तु आकीर्णा।
रूपाजीवा  इव संलग्ना त्वं प्रतिभासि सुरुचि अकुलीना।।1।।
केन प्रशंसा वाञ्छसि भामिनि चंचल नयन प्रसारिणी दीना।
यौवन भार गर्विता बाले! पीनस्तनी गौरा कटि क्षीणा।
ऐ!मृगनयनी मृगयारता काम शर क्षेपण कला प्रवीना।
सुभग़े सुग्रीवेलोल लोचने पीन पयोधरे वसन विहीना।।2।।
@विमल कुमार शुक्ल'विमल'

 मेरे कुछमित्र कह रहे थे कि उन्हें संस्कृत नहीं आती इसलिए वे इस कविता को समझ नहीं पाते अतः इसका अनुवाद कर दूँ| उनकी अभिलाषा व प्रेम को देखते हुए अनुवाद प्रस्तुत है|
ऐ! बालिके! चढ़ अट्टालिका किसलिए केश निज के संवारने में लीन है|
बड़ा घर तुम्हारा व सुन्दर मुखी है नहीं लगता कुल या कुटुम्ब से हीन है|
किसलिए केश-जालक गली में बिखेरा गली हिंस्र जीवों से आकीर्ण है|
जैसे कोई वेश्या प्रतीक्षारता है उसी भांति तेरी सुरूचि अकुलीन है|
चाहती है किसकी प्रशंसा को भामिनी चलाती है चंचल नयन हो दीन है|
यौवन के भार पे इतराती बालिके सुन्दर उरोज गौर कटि तेरी क्षीण है|
ऐ मृगनयनी! शिकार की ताक में काम वाण फेंकने की कला में प्रवीण है|
सुन्दर सुकंठी अमूल्य नैन वाली तू उभरे उरोज किन्तु वसन विहीन है|

गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

पेपर

सामने घर है,
घर में खिड़की है,
खिड़की के पार दिखती है
एक मेज।
मेज पर पन्ने हैं,
दबे हैं
पेपर वेट के तले,
जब उड़ते हैं
मैं समझता हूँ
हो गया है
विद्युत् विभाग का उपकार।
उफ़ पेपर उड़ रहे हैं।
आदमी झल रहा है
हाथ से पंखा
और एक असफल प्रयास।
दबती नहीं है सफोकेशन।
©विमल कुमार शुक्ल'विमल'

सोमवार, 16 मार्च 2015

फट गया टायर

०५/१२/१९९७ अमर उजाला कानपुर
फ़ट गया टायर जमाना हँस दिया।
रो पड़ा मैं पर जमाना हँस दिया।
जब हँसी को ओढ़कर रोने लगा,
कह मुझे कायर जमाना हँस दिया।
हाथ अँगारा लगा चीखी हलक,
स्वाँग है कहकर जमाना हँस दिया।
धार में बहना नहीं स्वीकार था,
इसलिये फिरकर जमाना हँस दिया।
जग हँसे परवाह क्यों करता ’विमल’
जो मिला उसपर जमाना हँस दिया।

शुक्रवार, 6 मार्च 2015

झाड़ू चुराने वाले

06/03/2015
झाड़ू चुराने वाले क्या तेरे मन में समाई,
काहे को झाडू चुराई।
तूने काहे को झाडू चुराई।
कैसे ये ठोंकी ताल दिल्ली में जाके।
क्या पाया तूने केजरीवाल को चिढ़ा के।
बत्तीस थीं सीटें तेरी तीन ही बचाईं।
फौजें भी भारी भरकम जीत को लगाईं।
सत्ता में होकर तेरी, झाड़ू की चलवाई।
काहे को झाडू चुराई तूने काहे को झाडू चुराई।

तू भी तो तडपा होगा झाड़ू को चुराकर।
वो भी तो तडपा होगा झाड़ू को गवांकर।
दोनों के मन में समाई दिल्ली की गद्दी।
एक के अरमान तो होने थे रद्दी।
बोल क्या सूझी तुझको काहे को टांग तुड़ाई।
काहे को झाड़ू चुराई, तूने काहे को झाड़ू चुराई।

बेदी को आगे करके लड़ना सिखाया।
लड़ना सिखाया हार गिरना सिखाया।
सत्ता के पथ के तूने फूल समेटे।
फूल समेटे तूने कांटे समेटे।
सपना जगा के तूने, वेदी को दे दी विदाई।
काहे को झाड़ू चुराई,
तूने काहे को झाड़ू चुराई।
बुरा न मानो होली है।...... @विमल कुमार शुक्ल'विमल'

गुरुवार, 5 मार्च 2015

चप्पल को बीबी का प्यार कहिये

१३/०६/९५

सहूलियत क्या है बिगाड़ कहिये।

जेब खर्च क्या है पगार कहिये।

बाप हो गये बुरा क्या बेटे।

स्वतन्त्र्ता का अधिकार कहिये।

जुनून औरत में मर्द से बढ़।

कि घर में इनकी ही सरकार कहिये।

हुक्म बजाया तो रोटी मिलेगी।

चप्प्ल को बीबी का प्यार कहिये।

बच्चों को डाँटा बहुत बुरा है।

बीबी को इनका सालार कहिये।

दूध की मक्खी हो साहब सदन में।

चुप जो रहे खुद को खैरदार कहिये।

परिवार अब खुदगर्जों का जमघट।

बेशर्म को ही समझदार कहिये।

"मैं" "तुम" ने इतना बखेड़ा किया है।

कि "हम" को न "हम" का तरफदार कहिये।

13/06/95

sahooliyat kyaa hai bigaaDx kahiye|

jeb kharc kyaa hai pagaar kahiye|

baap ho gaye buraa kyaa beTe|

swatantrtaa kaa adhikaar kahiye|

junoon aurat meM mard se baDhx|

ki ghar meM inakI hI sarakaar kahiye|

hukm bajaayaa to roTI milegI|

cappl ko bIbI kaa pyaar kahiye|

baccoM ko Daa~MTaa bahut buraa hai|

bIbI ko inakaa saalaar kahiye|

doodh kI makkhI ho saahab sadan meM|

cup jo rahe khud ko khairadaar kahiye|

parivaar ab khudagarjoM kaa jamaghaT|

besharm ko hI samajhadaar kahiye|

"maiM" "tum" ne itanaa bakheDxaa kiyaa hai|

ki "ham" ko na "ham" kaa taraphadaar kahiye|