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शुक्रवार, 6 मार्च 2015

झाड़ू चुराने वाले

06/03/2015
झाड़ू चुराने वाले क्या तेरे मन में समाई,
काहे को झाडू चुराई।
तूने काहे को झाडू चुराई।
कैसे ये ठोंकी ताल दिल्ली में जाके।
क्या पाया तूने केजरीवाल को चिढ़ा के।
बत्तीस थीं सीटें तेरी तीन ही बचाईं।
फौजें भी भारी भरकम जीत को लगाईं।
सत्ता में होकर तेरी, झाड़ू की चलवाई।
काहे को झाडू चुराई तूने काहे को झाडू चुराई।

तू भी तो तडपा होगा झाड़ू को चुराकर।
वो भी तो तडपा होगा झाड़ू को गवांकर।
दोनों के मन में समाई दिल्ली की गद्दी।
एक के अरमान तो होने थे रद्दी।
बोल क्या सूझी तुझको काहे को टांग तुड़ाई।
काहे को झाड़ू चुराई, तूने काहे को झाड़ू चुराई।

बेदी को आगे करके लड़ना सिखाया।
लड़ना सिखाया हार गिरना सिखाया।
सत्ता के पथ के तूने फूल समेटे।
फूल समेटे तूने कांटे समेटे।
सपना जगा के तूने, वेदी को दे दी विदाई।
काहे को झाड़ू चुराई,
तूने काहे को झाड़ू चुराई।
बुरा न मानो होली है।...... @विमल कुमार शुक्ल'विमल'

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