इस ब्लॉग के अन्य पृष्ठ

कक्षा के अनुसार देखें

गुरुवार, 10 अक्टूबर 2013

बदल गया स्कूल

बाबा कबीर का एक दोहा याद आता है,
"गुरु कुम्हार घट शिष्य है गढ़ गढ़ काढ़इखोट।
अंतर हाथ सहार दइ बाहर दइ दइ चोट ।।"

वक्त बदल गया तो इस दोहे को छोड़िये जनाब और यह कुंडलिया पढ़िये।

"गुरु विक्रेता शिष्य है, क्रेता अति धनवान।
पैसा खींचत गुरु भला, भला न पकड़े कान।
भला न पकड़े कान, कभी अपने शिष्यों का।
देवे भले न ज्ञान, कभी अपने हिस्सों का।
विद्यालय को छोंड़ क्लास ट्यूशन की लेता।
है पैसे की होड़, ज्ञान  का गुरु विक्रेता।।"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें