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सोमवार, 9 सितंबर 2013

दुकान चल रही है।

एक लेख पढ़ा लेखक विचार कर रहा था कि तमाम आरोपों के लगने जेल आदि हो जाने के बाद भी निर्मल बाबा और आसाराम बापू जैसे लोगों की दुकाने चल क्यों रही हैं। उनके यहाँ भीड़ और लोगों की आस्था में कमी क्यों नहीं होती।
अरे भाई यह हिंदुस्तान भेड़िया दसान यूँ ही तो नहीं कहा जाता है। यहाँ किसी की दुकान बंद नहीं होती। एक कहावत कही जाती है कसाई के कोसने से गाय तो नहीं मरती आपके सोंचने से दुकान भी बंद नहीं हो सकती। यहाँ दुकानें चल रही हैं जेल से आने के बाद भी साधू संतों की। किसी को ताज्जुब क्यों है? यहाँ जेल के अंदर दुकानें चल रही हैं गुंडे, मवाली, माफियाओं, नेताओं, चोरों, तस्करों, पुलिसवालों की। सभी के समर्थक मौजूद हैं समाज में।जितना बड़ा अपराधी उतनी बड़ी दुकान उतनी ज्यादा भीड़ धर्म हो या राजनीति आज के भारत का यही सच है।

लोकतन्त्र बनाम चोरतन्त्र

अब्राहम लिंकन ने कहा था "लोकतन्त्र जनता का, जनता के लिए, जनता के द्वारा शासन है।"
काश वह जीवित होते और भारत की वर्तमान मनमोहन सिंह सरकार को देखते तो यही कहते लोकतन्त्र चोरों की ,चोरों के लिए, चोरों के द्वारा सरकार है।
मुझे ताज्जुब नहीं होता की किस तरह से घोटाले दर घोटाले होते हैं, अर्थव्यवस्था लडखडाती है, पड़ोसी आँख दिखाते हैं, संसद हंगामे की भेंट चढ़ जाती है और सरकार कामचलाऊ रवैया अपनाते हुए जैसे दीन दुनिया से बेपरवाह अपना टाइम पास करती जा रही है। यह देखकर बड़ी निराशा होती है कि दागियों को संसद में बनाये रखने और उन्हें संसद में अधिक संख्या में पहुँचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का निर्णय पलटने के लिए पक्ष और विपक्ष सभी एकजुट हो जाते हैं। न तो विधेयक लाकर सदन में पास होने में देर लगती है और न अध्यादेश जरी करने में किन्तु यदि लोकहित का कोई मामला आ पड़े तो बड़ी हीला-हवाली होती है। आज भी संसद में अनेक विधेयक चर्चा और पास होने का इंतजार कर रहे हैं। 
यह सब देखकर तो यही लगता है की सत्ता हो विपक्ष चोरों की मौज है।

गुरुवार, 5 सितंबर 2013

इश्क-एक्सीडेंट

कौन कमबख्त चाहता है इश्क भी किया जाये।
ये एक्सीडेंट भी क्या तजुर्बे से होते हैं।