इस ब्लॉग के अन्य पृष्ठ

कक्षा के अनुसार देखें

बुधवार, 14 नवंबर 2012

भगवान



बच्चे  भगवान तुम भगवान के पिताजी,
ऊँची   कैंटीन   की  बेकार  पावभाजी।
पानी   बेभाव  सागर  बगल  में दहाड़े,
जिह्वा है  ऐंठती  क्या  खूब जालसाजी।
माना बलवान  हो  है  पूँछ  भी तुम्हारी,
रावण के बन्धुगण देने  को  आग राजी।
सोंचो शैतान आखिर चीख क्यों पड़ा  है?
उसके व्यवसाय पर भगवान है फिदा जी।
पत्ती तू पेड़ का  षडयंत्र  भी समझ  ले,
खाती है  धूप  देती  किन्तु छाँव ताजी।
काँटों में नैन के  उलझा  हुआ  कलेजा,
ले लो जो चाहते हो दिल न फाड़ना जी।

लेखक की इस ब्लॉग पर पोस्ट सामग्री और अन्य लेखन कार्य को पुस्तक का आकार देने के इच्छुक प्रकाशक निम्नलिखित ईमेल पतों पर सम्पर्क कर सकते हैं।

vkshuklapihani@gmail.com
vimalshukla14@yahoo.in
 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें