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सोमवार, 12 सितंबर 2011

भूत होते हैं?

भूत होते हैं या नहिं होते मैंने कभी दिमाग नहीं खपाया। उनसे मुझे डर लगता है या नहीं मुझे नहीं मालूम। लेकिन जीवन में कुछ घटनायें ऐसी होती हैं जिनका रहस्य खुल जये तो मामूली लगती हैं और रहस्य न खुले तो अलौकिक या भूताचाली लगती हैं| ऐसी ही एक घटना मेरे जीवन में घटित हुई है उसका सच्चा बयान करता हूँ पढ़ें।बात सन १९८२ य ८३ की है मेरी उम्र कोई ९ साल रही होगी मैं कक्षा ४ या ५ का विद्यार्थी था मुझे ठीक से याद नहीं। मैं पिहानी से शाहाबाद जाने वाली बस पर सवार हुआ और कोई ६ बजे शाम को अन्तोरा गाँव में उतरा। वहाँ उस दिन स्थानीय बाजार लगा था। मैंने एक दुकान पर लैया के बने हुए लड्डू खरीदे जिन्हें स्थानीय भाषा में मुरमुरिया कहते हैं। पानी पिया और वहाँ से कैमी गाँव के लिये पैदल ही रवाना हुआ।अन्तोरा से कैमी कि दूरी कोई डेढ़ किमी है। आधे रास्ते में मुझे याद आया कि मैंने जो झाड़ू पिहानी में खरीदी थी वह उस दुकान पर ही भूल आया जहाँ मुरमुरिया खरीदी थी। मैं तुरन्त ही उन्हीं पैरों वापस आया खैर मुझे झाड़ू सही सलामत उसी दुकान पर मिल गयी मैंने झाड़ू उठायी पुनः कैमी के लिये प्रस्थान किया। अँधेरा हो चला था। अब मैं शायद आखिरी व्यक्ति थ
k जो इस शाम को इस रास्ते से गुजर रहा था क्योंकि मुझे इस समय कोई दूसरा इस रास्ते पर दूर दूर तक नजर नहीं आ रहा था।रास्ते में बरसात का पानी जमा हो जाने वाली निचली भूमि थी जिसे स्थानीय भाषा में जोर कहते हैं उस पानी में घुस कर पार करना पड़ता था। मैं भी उसमें घुसा। यह जोर कैमी व अन्तोरा के लगभग बीचोंबीच थी। मैंने जोर को घुसकर पार किया और गाँव की ओर चलने लगा। मुझे ऐसा मह्सूस हुआ कि जैसे कोई मेरा पीछा कर रहा है। मेरे चलने से सट सट सट सट की आवाज आ रही थी जैसे कोई हवाई चप्पल पहन कर मेरे पीछे पीछे चल रहा हो।मेरी उम्र कच्ची थी अँधेरा हो चुका था और उस जोर को पार करने के तुरन्त बाद में एक बाग पड़ता था जिसमें से होकर मैं गुजर रहा था। इस बाग के बारे में स्कूल के बच्चों में यह अफवाह थी कि इसमें तेजा नाम के किसी आदमी का भूत जब तब टहलता देखा जाता है इसलिये अब मुझे डर लगने लगा। बावजूद इसके कि मैं निडर प्रकृति का व्यक्ति हूँ मैंने अपनी चाल तेज कर दी तो मुझे लगा कि पीछा करने वाले ने भी अपनी स्पीड बढ़ा दी है। सट सट सट सट की आवाज भी स्पीड पकड़ गयी है अब तो मेरी रूह काँप गयी और मुझे अपनी सात पुस्तें याद आ गयीं।मैं दौड़ने लगा लेकिन अपने छोटे छोटे पैरों से कहाँ तक भागता फिर मुझे भागने का अभ्यास भी नहीं था। मै थककर चूर हो गया मगर मेरा पीछा करने वाला रुक नहीं रहा था। वह भी दौड़ रहा था। इस बीच मैंने कई बार पीछे मुड़ मुड़कर देखा लेकिन पीछा करने वाला मुझे कहीं दिखायी नहीं दिया। मेरे हौसले पस्त हो गये और मैं रुक गया। लगभग रात हो गयी थी तारे इक्का दुक्का आसमान पर दिखायी देने लगे थे रात उजाली थी लेकिन रास्ते पर ५० मीटर से अधिक अब नहीं देखा जा सकता था। मैंने अँधेरे में दो चार आवाजें दीं कौन है? कौन है? कौन है? मगर वहाँ कोई नहीं था। मैं परेशान हो गया था समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ?तब मैंने फैसला किया कि अब और नहीं दौड़ूँगा चाहे जो हो जाये अब जो सामने आयेगा उससे टकराऊँगा| यद्यपि सच यह है कि थकान के कारण मैं ठीक से खड़ा भी नहीं हो पा रहा था साँस उखड़ सी रही थी। कुछ देर यथावत खड़ा रहा कोई सामने नहीं आया तब मैं धीरे धीरे पुनः कैमी की ओर चला।सट सट सट सट की आवाज अब भी आ रही थी। अब मैने यह सुनने का निश्चय किया कि आखिर आवाज आ कहाँ से रही है। तब मैंने नीचे की ओर देखा आवाज वहाँ से आ रही थी। मैंने देखा कि मेरे पायजामे के दोनों पाँयचे पानी में भीगकर आपस में चिपक गये हैं और मेरे चलने से आपस में टकरा रहे हैं जिससे सट सट सट सट की आवाज आ रही है। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ हँसी भी आयी मगर मारे थकान के मैं हँस भी नहीं पाया हाँ दिल को तसल्ली जरूर मिली।

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