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बुधवार, 25 अक्टूबर 2023

हमहु खाली खपड़ी की खुजली मिटायेन

जो मूडे मा आवा तौ मजमा लगायेन।
हमहु खाली खपड़ी की खुजली मिटायेन।।
मदन्नू, महतिया, महेन्दर, मुरारी,
सबै गाॅंठै बातें हवा की सवारी।
न गन्ना न गेंहूॅं न मोहरा दुआरी,
न गैया न गोरू बनाई बिगारी।
मगर इनके मुॅंह ज्ञान अद्भुत पिटारा,
बिखेरै की खातिर इनका बुलायेन।।
हमहु खाली खपड़ी की खुजली मिटायेन।।
रहै मद्दा ठगउरि न जाने थी पब्लिक,
रहै खाइ का कम खुशी पै चतुर्दिक।
मदन्नू बताइनि कमर मा गई चिक,
जो उल्टा था जन्मा लगाएसि जरा किक।
रहै बात अद्भुत समुझि माॅं न आवै,
बिना डाॅक्टर औ' दवा दौड़ि पायेन।।
हमहु खाली खपड़ी की खुजली मिटायेन।।
महतिया बनाएनि महत्तम जतन ते,
जिला राजधानी सबै नापि तन ते।
न लेना न देना बड़े अफसर न ते।
बड़े बरगदन का उखारिनि जरन ते।
जो पूछेन सचाई बताइनि महतिया,
कि थोड़ा जलेन हम औ ज्यादा जलायेन।।
हमहु खाली खपड़ी की खुजली मिटायेन।।
महेन्दर न समझैं पढ़ाई-लिखाई,
कहैं लरिकिनी सीखि जातीं ढिठाई।
जै कॉलेज के लरिका जुगाड़ैं भिड़ाई,
तकैं नौकरी कामु अपनो बिहाई।
निजी सभ्यता संस्कृति को भुलाये,
जुआ, दारू-सिगरेट में सबकुछ उड़ायेन।।
हमहु खाली खपड़ी की खुजली मिटायेन।।
मुरारी बड़ी चिन्त करते सबन की,
दिशा मोड़ सकते गगन के पवन की।
रखें जानकारी खगन के परन की,
इन्हैं युक्ति आवै समस्या हरन की।
मगर सिलि न पावैं अपनी फटी का,
पड़ोसी के कुत्ता से खुद का कटायेन।।
हमहु खाली खपड़ी की खुजली मिटायेन।।

सोमवार, 23 अक्टूबर 2023

बेचारी जनता

19/05/2018

जब जब चीजें हल्के में ले ली जायेंगी।

सड़ी चादरें जोड़ तोड़ से सीं जायेंगी।

रिश्वत वाले पेट नगाड़ा हो जायेंगे।

जिम्मेदार तानकर चादर सो जायेंगे।

तब तब बिल्डिंग या फिर पुल को गिरना होगा।

बेचारी जनता को पिसना मरना होगा।।


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रविवार, 8 अक्टूबर 2023

आयुष्मान कार्ड की प्रासंगिकता

हमें पाॅंच लाख वाली बीमारी हो जाये तो साहब हम मरना पसंद करते हैं इलाज कराना नहीं। हमारे लिए तो खाॅंसी जुकाम बुखार दस्त पेचिश का इलाज ही सस्ता मिल जाए बस इतना करिये। लेकिन आप तो सब्जबाग दिखाने में माहिर हैं, आपको पता है कि हल्की-फुल्की बीमारी में हम आयुष्मान योजना का लाभ लेने से रहे और पाॅंच लाख वाली बीमारी हो इससे पहले मर जायेंगे। आपके लिए सॉंप भी मरा और लाठी भी नहीं टूटी। एक तरफ पीठ भी थपथपा ली अपनी कि हम गरीबों का इलाज मुफ्त में करेंगे दूसरी तरफ इलाज भी न करना पड़ेगा।
शर्त यह भी आयुष्मान कार्ड उसका बनेगा जिसके राशनकार्ड पर ६ यूनिट हों। अब 6 यूनिट बनाने की न तो क्षमता रही और न मानसिकता।
मुझे याद है कि 1990-2000 के दशक में कोई भी सरकारी अस्पताल चला जाता और डॉक्टर उसे ठीक से देखभाल कर दवा दे देता था बस एक रूपए के पर्चे पर। आज क्या हो गया? कि आयुष्मान कार्ड की जरूरत पड़ गई। इस ढोंग की क्या आवश्यकता है? जितना स्टाफ और कर्मचारी व अन्य खर्च आयुष्मान कार्ड के निर्माण पर है उतने के खर्च में तो गरीब आदमी के छोटे मोटे इलाज करा दीजिए साहब। लेकिन इससे आपको प्रचार नहीं मिलेगा न। आप तो ठहरे प्रचार प्रिय प्राणी।
कुछ न करें इतना करें। 2018 से पूर्व की व्यवस्था ही दवा व्यापार में लागू कर दें। 2018 से पूर्व जब आप दवा लेने मेडिकल स्टोर पर जाते थे तो आपको पता था कि यह ओरिजनल कम्पनी की दवा है और इसकी कीमत में बहुत ज्यादा ऊॅंचनीच नहीं होगी। 200 रुपए की दवा का मतलब 200 रुपए। लोकल या नकली दवा उसका कोई रेट नहीं है उसे पता था। आज ओरिजनल कम्पनी की दवा भी 200 रुपए रेट प्रिंट है कहो एक मेडिकल स्टोर पर 150 रुपए की मिले तो दूसरे मेडिकल स्टोर पर केवल 50 रुपए की। कोई नियंत्रण आपका है कि नहीं? या लूट की खुली छूट है? मुझे लगता है 2019 के इलेक्शन का खर्च दवा मार्केट से ही वसूला जा रहा है। रही सही कसर आयुष्मान कार्ड के बहाने पूरी करने प्रयास किया जा रहा है। शिक्षा और स्वास्थ्य सभी अमीर गरीब को समान रूप से उचित खर्च पर उपलब्ध हों ऐसे प्रयास होने चाहिए किन्तु वर्तमान में दोनों की हालत बद से बद्तर हो रही है और आप शुतुरमुर्ग की तरह व्यवहार कर रहे हैं।