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गुरुवार, 29 सितंबर 2022

जय हे! माते!


जय हे! जय हे! जय हे! माते!
इस भक्त का मान बनाए रखो!
संसार भले विस्मृत होये,
निज चरणों का ज्ञान बनाए रखो।।
झोली फैला क्या माँगूँ मैं,
इस शीष पे हाथ बनाए रखो।
तुम मातु सी मातु हो जग जाने,
इस पुत्र से साथ बनाए रखो।।
सम्पत्ति मुझे जो दी माते!
उसको सम्पूर्ण बनाए रखो।
निष्क्रिय होकर रुक जाऊँ नहीं,
इतना आघूर्ण बनाए रखो।।
तुम संग रहो इस बालक के,
नित बाल स्वभाव बनाए रखो।
जिह्वा रटती रहे माँ, माँ, माँ,
उर में एक घाव बनाए रखो।।

रविवार, 18 सितंबर 2022

सम्मान

सम्मान ओढेंगे या बिछायेंगे,
कमरे की दीवार पर सजायेंगे।
खूँटी पर टाँग लेना है या,
हुक्के में भर गुड़गुड़ायेंगे।
बतायें तो सही पाँच हजार में,
कैसा साहित्यिक सम्मान चाहेंगे।
आपके खास आर्डर पर वैसा ही,
सम्मान फैक्ट्री में तैयार करवायेंगे।
आप चाहें तो रेडीमेड भी मिलेगा,
कुछ खर्च भी कम लगेगा
किन्तु शर्त है 
मंच से उतरने के वापस लिया जाएगा,
और दो घंटे बाद 
किसी और को दिया जाएगा।
😀😀😀😀
अपने एक कवि मित्र की सम्मान के लिए डिमांड पर सम्मान सहित अ-कविता
विमल 9198907871

तू कहे तो चलूँ

मेरा चलना ठहरना तुम्हारी खुशी।।
तू कहे तो रुकूँ तू कहे तू चलूँ।
प्रेम के पन्थ में स्वत्व होता नहीं,
जिस तरह से उदधि में उतरती नदी।
शैल पर जो खड़े शैल से जो जड़े,
भाग्य में नेह की लिपि छपी ही नहीं।
मोम जैसा बनूँ ताप तो मिल सके।
तू कहे तो तरल बूँद बन बन गलूँ।।1।।
तू कहे तो रुकूँ तू कहे तू चलूँ।
मेघ की यह नियति है पवन सँग बहे,
चन्द्र कब नभ सजे चन्द्रिका के बिना,
ज्योति होगी तभी तो प्रभा राजती,
तट बिना सरि कहाँ ध्यान में आयेगी।
नेह की डोर पर तू नटी सी चले,
मैं भी नट की तरह झूम लूँ नाच लूँ।।2।।
तू कहे तो रुकूँ तू कहे तू चलूँ।
अब न पतझड़ के दिन हैं न ऋतु ग्रीष्म की,
शीत की रात बीते समय हो गया,
याद में ही बची बूँद बरसात की,
है बसंती सुबह की पवन मोदमय।
तुझमें हो यदि हुनर अंक में आ उतर,
तू भ्रमर हो सके पुष्प हो मैं खिलूँ।।3।।
तू कहे तो रुकूँ तू कहे तू चलूँ।

शनिवार, 17 सितंबर 2022

नुस्खा यही अभेद्य

पत्नी से परेशान लोगों के लिए
कुण्डलिया
पत्नी की पूजा करो, अर्प धूप नैवेद्य।
पद छू दिन प्रारम्भ हो, नुस्खा यही अभेद्य।
नुस्खा यही अभेद्य, पूजिये पत्नी मैया।
जो दिखती है भैंस, दिखेगी तुमको गैया।
नजर कीजिये बन्द, तिजोरी खोलो अपनी।
देगी सब वरदान, माँग भर तेरी पत्नी।।
विमल 9198907871

रविवार, 11 सितंबर 2022

शुभे

कुण्डल कानों पर छजे, छजे नाक नकबिन्दु।
बिंदिया मस्तक-मध्य में, रचे इन्दु पर इन्दु।
रचे इन्दु पर इन्दु, मेघ बन लहरें कुन्तल।
दो अधरों के मध्य, दंत एल ई डी चंचल।
शुभे! तुम्हारी श्वास, सुवासित दश दिशि मण्डल।
चुम्बन लेता नित्य, अगर मैं होता कुण्डल।।

शनिवार, 3 सितंबर 2022

गुलाब जल

पापा मम्मी का दुलार भरा हाथ शीश रहे,
आसमां में छेद करो छेद हो ही जाता है।
बीबी और बच्चों की रेड पड़ जाती है जब,
कालाधन सिर पर सफेद हो ही जाता है।
प्रेमिका प्रपंच में जो पड़ गए आप बन्धु,
तन का गुलाब जल स्वेद हो ही जाता है।
कली जो बसंत छोड़ दिन निपटाय रहीं,
बाबा कह जाती हैं तो खेद हो ही जाता है।