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शनिवार, 18 जून 2022

उल्लूपने का काम

उपद्रवियों से विनम्र निवेदन है कि राष्ट्रहित में राष्ट्रीय सम्पत्ति को हानि पहुँचाना बंद करें। आपकी पीड़ा शायद मेरी भी हो। किन्तु लोकतंत्र में विरोध का यह तरीका बिल्कुल भी जायज नहीं है। सरकार की नीतियों से असहमति अपनी जगह और उसके लिए तोड़फोड़ अपनी जगह। 
सरकार ने तो बिना विचारे काम करने की हठ पकड़ ली है। पहले नोटबंदी, फिर सी ए ए, फिर किसानों के लिए कानून और अब अग्निवीर योजना। किस-किस बात के लिए तोड़ फोड़ करोगे। आप किसी योजना से असहमत हैं तो आपके पास शान्तिपूर्ण प्रदर्शन का अधिकार है या चुनाव में आपके पास मौका होता है कि आप सरकार को उसकी औकात बता सकें। 
समस्या यह भी है कि शान्तिपूर्ण प्रदर्शन की भाषा वो सरकार कैसे समझे जिसकी आईटी सेल लगातार प्रचारित कर रही है कि गाँधी की शान्ति और अहिंसा छलावा थी। अंग्रेज देश छोड़ कर इसलिए गए क्योंकि हिंसक आन्दोलन उस काल में हुए। अंग्रेजों की दृष्टि में जो उग्रवादी थे वे इस सरकार के समर्थकों की दृष्टि में सबसे बड़े देशभक्त थे और गाँधी दोगले। तो भैया जैसा बोओगे वैसा काटोगे यह जग की रीति है। एक ओर सरकार व उसके समर्थक उग्रवाद को महिमामंडित करें और दूसरी ओर तोड़ फोड़ करने वालों की निन्दा ये दोनों बातें एक साथ कैसे हो सकती हैं।
तो भैया चुनाव तक इन्तजार करो और तोड़ फोड़ बन्द करो।
सरकार के लिए भी यह आत्मावलोकन का अवसर है कि लम्बे समय तक आप जनता को बेवकूफ नहीं बना सकते। जनता में लोकप्रियता हासिल कर लेना और जनहित के फैसले लेना दो अलग अलग बातें हैं। जनता प्रायः छल को समझ नहीं पाती और जब तक समझती है तब तक देर हो चुकी होती है। इस सरकार और वर्तमान जन के मध्य भी यही है। 
सरकार कुछ भी कहे कि वह कानूनी प्रक्रिया का पालन करेगी किन्तु करते समय वह पक्षपात अवश्य करेगी। हर जगह वह बुलडोजर का प्रयोग नहीं कर सकती। हर जगह बुलडोजर सफल भी नहीं हो सकता यह बात मेरे जैसे दो चार गाँधी समर्थक ही जानते हैं। 
लोकतंत्र में बहुमत की चलती है और यही लोकतंत्र का गुण भी है और अवगुण भी। गुण और अवगुण के मध्य बहुत बारीक विभाजक रेखा है। उसे देखने के लिए बहुत बारीक बुद्धि भी चाहिए। बुद्धि के सन्दर्भ में जार्ज बर्नाड शॉ के पात्र ब्लंटशली ने रैना से कहा, "नाइन सोल्जर्स आउट ऑफ टेन आर बॉर्न फूल्स।"
दुर्भाग्य से इस समय विवाद भी सोल्जर्स के सन्दर्भ में ही है। लेकिन मैं इस कथन को सम्पूर्ण समाज पर लागू कर जब लोकतंत्र के परिप्रेक्ष्य में देखता हूँ तो यही लोकतंत्र का सबसे बड़ा अवगुण है। बहुत बार नौ लोगों ने उल्लूपने का काम किया है और आगे भी करते रहेंगे।

सोमवार, 13 जून 2022

लाजवाबी

गुलब्बो कहाँ तक गुलाबी रहेगी,
नजर से कहाँ तक शराबी रहेगी,
मगर नेह की अग्नि उर से उठी है,
जहाँ तक रहे लाजवाबी रहेगी।।1।।
गला ढल गया गुम हुआ है तरन्नुम,
अभी इल्तिजा गर मिले वो तबस्सुम, 
गुलब्बो समाँँ बाँध देगी जहाँ में, 
बना देगी जन्नत मिले जो जहन्नुम।।2।।
नोट-गुलब्बो प्रायः मेरी कविताओं का ऐसा काल्पनिक पात्र है जिसे मैं प्रेम करता हूँ।

शुक्रवार, 10 जून 2022

चित्रमाला

ये जो हँसते-मुस्कुराते हुए एकदूसरे के कँधे पर हाथ रखकर, गोद में उठाकर या आलिंगनबद्ध होकर बीसियों तरह की मुद्राओं से युक्त चित्रमाला सोशल मीडिया पर लगाई है सच बताना इस प्रेम में कितनी सच्चाई है। प्रश्न ये भी है कि विवशताओं के मध्य यह फिल्मी अदाकारी कहाँ से आई है। तुम्हारे अधरों की भंगिमा लिखे गए शब्दों का साथ नहीं देती, नयन तो किसी स्वर्णमृग या स्वर्णमृगी के पीछे गए हुए लगते हैं। कभी कभी ऐसा भी प्रतीत होता है कि चिपका दिए गए हो काटकर पास-पास। 
ये जो पग पग पर साथ देनेवाली बात लिख देते हो इसमें कितनी सच्चाई है। सच बताना किसके दबाव में ये बयान चिपका देते हो। मिसेज के साथ फोटो मजबूरी है। प्रेस्टीज का सवाल है बाबा। न कहीं काशी न कहीं काबा। मगर विशेषण बाबू, बेबी, सोना और बाबा। कभी किच किच नहीं होती? कितने नीरस हो? या सच कह नहीं सकते बेबस हो। 

गुरुवार, 9 जून 2022

बेटा बहू


जिनके हित में बंजर कर दी अपनी हरी बहार में,
बेटे बहू नहीं आते हैं अब घर पर त्यौहार में।।
अपनी अपनी ध्वजा उठाए सब विकास की चाह रहे,
रोजीरोटी का रण लड़ते देख विजय की राह रहे।
कुछ तो खोए हुए तरक्की की सतरंग मल्हार में।।
बाहर बेटा गया अकेला दो होकर अब रहता है,
लेकर बहू आ रहा घर पर हर महिने ही कहता है,
आँखें उलझी हुई प्रतीक्षारूपी काँस-सिवार में।।
बेटे के सिर सेहरा देखें मन की चाह मरी मन में,
कभी नहीं जानी है मस्ती पोती-पोतों के धन में,
सिसक सिसक कर कटे जिंदगी जीवन की पतझार में।।

सोमवार, 6 जून 2022

छप्पन इंची गुब्बारा

2014 में गुब्बारे का साइज 56 इंच था। जनभावनाओं के सहारे उड़ा तो उड़ता गया। भूल गया कि हर उड़ान की सीमा है। जमीन और आसमान के तापमान और दशाओं में फर्क होता है। उड़ने की स्वतंत्रता में संविधान का बंधन है। अब संविधान के अनुच्छेदों में छेद ढूँढ़ कर बढ़ना सरल रहा तो बढ़ लिये। लेकिन धर्म व जाति ऐसा भावनात्मक बिन्दु है जिस पर भारत जैसे बहुलतावादी देश में खड़े होकर कला करना बहुत मुश्किल है। 
किसानों का विरोध करते करते इस गुब्बारे में हवा भरनेवालों ने सोये हुए खालिस्तानियों को भी तमाशा देखने के लिए बुला लिया। मैं इसे आन्तरिक कूटनीतिक असफलता मानता हूँ। 
पुनश्च मुस्लिमों व कश्मीर का मसला ऐसा है जो एक दूसरे से अलग होते हुए भी एक दूसरे में गुंथे हैं। इस मसले से ऐसा समूह जुड़ा है जिसकी आँखों पर आसमानी किताब का वो नूर है जिसमें तर्क की रोशनाई नहीं होती। जिसके लिए छठवीं शताब्दी और बाइसवीं शताब्दी के समाज में कोई अन्तर नहीं है। इसने इतनी सामान्य बात नहीं समझी संसार में सब कुछ परिवर्तनशील है। इसने यह नहीं सीखा कि जो परिवर्तित न होंगे तो नष्ट हो जाएंगे। 
इस वर्ग के अन्दर ही कुछ लोग जिन्होंने परिवर्तनों को स्वीकारा भी उनका भी व्यवहार दोगला है। बस एक उदाहरण पर्याप्त है कि संगीत इस्लाम विरोधी है लेकिन किसी की शादी में जाकर बाजा बजाना बिल्कुल भी इस्लाम विरोधी नहीं है।
जो भी हो मेरा इस्लाम और इस्लामिकों से कोई लेना देना नहीं है। उन्हें अपना आचार विचार मुबारक। 
मैं तो गुब्बारे की चर्चा कर रहा था। गुब्बारे में हवा भरनेवालों ने  अयोध्या की हरित भूमि से अपने गुब्बारे को पार कराया तो गुब्बारे में पंख लग गए। एक तो छप्पन इंच दूसरे पंख चढ़ा। मथुरा व काशी की सैर पर भी निकल पड़ा। कुछ तमाशाई जोश में आकर गुब्बारे को पूरे देश की सैर कराने पर आवाज लगाने लगे। बड़ी विवशता में या सदाशयता भी हो सकती है कि आर एस एस के मुखिया को कहना पड़ा कि काशी की तरह का अभियान प्रत्येक बिल्डिंग के लिए नहीं चलाया जाएगा। अच्छा है। 
कश्मीर में या विश्व में अन्यत्र जब कोई आतंकी घटना होती है तो जैसे यह वर्ग देश में या विश्व में रहता नहीं या अन्धा बहरा है लेकिन जैसे ही किसी आतंकी की गर्दन पर लात रखी जाती है तो पेट वाले भी पत्थर टटोलने लगते हैं। जब तक यह वर्ग अपनी भेदभाव वाली मानसिकता से बाहर नहीं आएगा यह संघर्ष अनवरत जारी रहेगा। 
अब फिर गुब्बारे पर आते हैं। गुब्बारा जब बहुत ऊँचाई पर पर पहुँचा तो जोशीले दर्शकों से उसकी दूरी बढ़ गई। शायद एक दूसरे का तालमेल भी टूटा। दर्शकों तक गुब्बारे की प्रतिक्रिया शायद नहीं पहुँच रही या दर्शक गुब्बारे की गति से कोई सबक नहीं लेना चाहते। दर्शक यह भी नहीं समझ पा रहे कि समय के साथ गुब्बारे की दीवारों से वायु विसरित हो जाती है और गुब्बारा नम्र हो जाता है। गुब्बारे का साइज भी कम हो जाता है। 
दर्शकों की समस्या यह है कि उनकी बुद्धि तेज हो गई है कि वे पीछे रह गए और बुद्धि आगे निकल गई। वे भूल जाते हैं कि वे उस शत्रु को कभी समाप्त नहीं कर सकते जिसकी मनोवृत्ति नहीं परिवर्तित कर सकते। शत्रु को समाप्त करना है तो मनोवृत्ति को परिवर्तित करें। लेकिन हवाभरने वाले स्वयं स्वीकारते हैं कि जल को रंगीन बना सकते हैं कीचड़ को नहीं।तो भैया कीचड़ में लोट लगाना बंद करें। गुब्बारे को सही दिशा में उड़ने के लिए प्रेरित करें। गुब्बारे को भी सोचना पड़ेगा जहाँ दस इंच की जगह हो वहाँ से छप्पन इंच नहीं गुजर सकता। हवा भरनेवाले गुब्बारे का साइज कम होते नहीं देखना चाहते यद्यपि साइज कम होना नियति है। 

रविवार, 5 जून 2022

नया व्यवसाय

आजकल पकड़ा हुआ मैंने नया व्यवसाय है।
शव पुराने खोदता या संग रहती गाय है।।
पात्र अपने मन मुताबिक चुन लिए इतिहास से,
कींच में डाला किसी को रंग दिया उजियास से।।
चोंच लड़तीं जा रहीं हैं गीत सबके ही मधुर।
रँग बिरंगी हर किसी की टोपियाँ हैं उच्चतर।।
शीश नंगा ले फिरूँ अपनी प्रकृति में है नहीं।
गूँथ कर उद्दण्डता सिर पर उठाये हूँ मही।।
हाकिमों ने भय बनाया है सभी के हृदय में।
आग का मैं भी खिलाड़ी नित्य रहता प्रलय में।।
ध्वंस से सम्बन्ध तोड़े मैं सृजक हूँ सृष्टि का।
यत्न करता हूँ कि कृति में भाव हो उत्कृष्टि का।।

शनिवार, 4 जून 2022

रखवाला

अपना तो हर काम निराला होता है।
जब आँखें हों बन्द उजाला होता है।।
घर खाली है इतने भ्रम में मत रहना,
प्रायः मेन गेट पर ताला होता है।।
जो भी जाति नहीं लड़ पाती अपना रण।
उसका लिखा पढ़ा सब काला होता है।।
अपने तन मन में लड़ने का जोश न हो।
साथ न कोई देनेवाला होता है।।
यदि वैरी का शीष काटना ठन जाए।
हाथ खड्ग उर मध्य शिवाला होता है।।
घर को छोड़ भागते फिरने वालों का,
कहीं नहीं कोई रखवाला होता है।।

शुक्रवार, 3 जून 2022

खुद से शादी

स्वयं से प्रेम तो बहुत से मनुष्य करते हैं, मैं भी करता हूँ। किन्तु विवाह तो किसी अन्य से ही किया है। विवाह का उद्देश्य प्रेम होता है पहली बार पता चला। हमारी सनातन परंपरा में तो दो अनजाने लोग विवाह करते रहे हैं बच्चे पैदा करते रहे हैं परिवार का विस्तार करते रहे हैं। उनमें कभी प्रेम हुआ तो ठीक नहीं हुआ तो ठीक। मेरे अपने विवाह को 26 वर्ष हो गए। मैं अपनी पत्नी से प्रेम करता हूँ निश्चय करके नहीं कह सकता। पत्नी को छोड़िये मेरे जानने वालों को कोई यह बता दे कि विमल कुमार शुक्ल को किसी से प्रेम भी है तो विश्वास नहीं करेंगे। 
विवाह का कारण प्रेम है तो यह भी आवश्यक नहीं। हमारे समाज में तमाम लोग हैं परस्पर प्रेम करके जीवन बिता देंगे पर विवाह नहीं करेंगे। विवाह किसी और से प्रेम किसी और से यह भी चलता है। 
फिल्म वालों ने लैला मजनूँ और शीरी फरहाद से टपोरियों को दिमाग में इस तरह भर दिया है कि अब प्रेम पहले फिर शादी और कभी कभी शादी से पहले ही ब्रेकअप। 
मैं कुछ लोगों को जानता हूँ जो विवाह करके अपना घर तो बसा  नहीं पाये हाँ प्रेम के चक्कर में दूसरे का तोड़ जरूर दिया। ऐसे लोग भी समाज में हैं विवाह नहीं करेंगे लेकिन हर फूल का आस्वाद ग्रहण करने के चक्कर में रहेंगे। एक उम्र पर जब स्थायित्व चाहेंगे तो फूलों के द्वारा स्वतः फेंक दिए जायेंगे। 
खैर आप विवाह करें न करें। आपकी इच्छा। संविधान अनुमति देता है। किन्तु बायोलॉजी का क्या? बायोलॉजी सभी सजीवों में (पेड़ पौधों सहित) अपनी सृष्टि विस्तार के लिए लैंगिक व अलैंगिक दो प्रकार के साधनों को इंगित करती है। लैंगिक व अलैंगिक जनन करनेवाले प्राणियों की पृथक पृथक विशेषताएं होती हैं। स्पष्टतः मनुष्य लैंगिक प्राणी है। जैसे ही बालक बालिकाएं किशोरावस्था में पहुँचते हैं विपरीत लिंगियों में आकर्षण बढ़ जाता है। इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है। हाँ हमारी सामाजिक परम्पराओं व मान्यताओं के कारण हम लड़के लड़कियों के स्वतंत्र मेलजोल को अनैतिक मानते रहे हैं। 
इस अनैतिकता को नैतिकता का स्वरूप प्रदान करने के लिए ही विवाह को स्वीकारा गया है। दूसरे आयुर्वेद के जानने वाले जानते है कि शरीर के चौदह वेग भूख, प्यास, खाँसी, श्वास, जम्भाई आदि में एक वेग यौनेच्छा का भी है। इन सारे वेगों को रोकने से शरीर विकारग्रस्त हो जाता है। विवाह मनुष्य की यौन इच्छाओं की तृप्ति का साधन भी है। भौतिकी में भी न तो धनावेश-धनावेश आकर्षित होते हैं और न ऋणावेश-ऋणावेश। ये सदैव प्रतिकर्षित ही करते हैं। कार्यफलन के लिए धनावेश व ऋणावेश का संगम आवश्यक है। इसी प्रकार चुम्बक में ध्रुवों का व्यवहार भी होता है। उत्तर-उत्तर व दक्षिण-दक्षिण ध्रुव कभी नहीं मिलते। एकल ध्रुवीय चुम्बक का तो अस्तित्व ही नहीं होता। 
ठीक इसी प्रकार आप सनकी या महामानव हो सकते हैं किन्तु परिवार नहीं हो सकते। परिवार के लिए धनावेश-ऋणावेश, उत्तर ध्रुव-दक्षिण ध्रुव जैसे ही स्त्री-पुरूष तथा प्रेम और घृणा दोनों की ही आवश्यकता होती है। 
यह सम्भव है कि आपको अपने मनोनुकूल साथी मिलने में समय लगे इसके लिए ईश्वर से प्रार्थना करें किन्तु मिलेगा अवश्य। न मिले फिर दूसरे को अपने मनोनुकूल बना लें। सबसे सरल है स्वयं दूसरे के मनोनुकूल बन जाएं। प्रेमी का यह भी एक स्वरूप होता है और सर्वोत्तम स्वरूप है कि हम वह बनें जो हमारा प्रेमी/प्रेमिका चाहता है/चाहती है। मार्ग अनन्त हैं हठ छोड़ कर देखें।
संक्षेपतः विवाह एक आवश्यक व नैतिक शर्त है, आप करें न करें आपकी मर्जी, किन्तु उपयुक्त अवस्था प्राप्त कर, पूर्ण स्वस्थ होकर भी विवाह नहीं करते तो आप मनोविकारी हैं हाँ सन्यासी हो जाएं अलग बात है। तो मेरा सुझाव है यदि आपकी उम्र हो गई है नैसर्गिकता का आनन्द लें विवाह करें और वैवाहिक धर्म का पालन करें। जिस प्रकार मार्ग सदैव समतल नहीं होता उसी प्रकार जीवन भी समतल नहीं होता। पर्वतारोहण से घबरायें नहीं।