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सोमवार, 16 मई 2022

बुद्ध ने क्या दिया

फेसबुक पर एक भाई ने पूछा कि गौतम बुद्ध ने देश को दिया क्या है? तो मैं अल्पबुद्धि व्यक्ति कुछ लिखने का साहस कर रहा हूँ। कुछ अनुचित लिखा हो तो क्षमा करें।
बन्धु वर्तमान में ऐसे विवादों की आवश्यकता नहीं है। गौतम बुद्ध भारतीय वाङमय में ऐसे विचारक हैं जिन्होंने समाज को एक नवीन मानवतावादी दर्शन प्रदान किया जो सत्य, प्रेम और अहिंसा पर आधारित था। वह महात्मा अगस्त्य(शैव मत के प्रचारक) के पश्चात ऐसे दूसरे विद्वान थे जिन्होंने भारतीय मनीषा को सम्पूर्ण विश्व में प्रसारित कर पाने में और बड़े बड़े राजा महाराजाओं को अपने सिद्धांतों से अभिभूत करने में सफलता पाई थी।  गौतम बुद्ध ने जिस मध्यम मार्ग को अपनाने की बात कही है वह ऐसा मार्ग है जिसकी उपेक्षा करने के कारण हम असंख्य सुविधाओं से युक्त होने पर भी विषादग्रस्त हैं।
रही बात सनातन धर्म व बौद्धों के बीच मतभिन्नता और तोड़फोड़ की तो विगत की बात है जिस की चर्चा न हो तो बेहतर।
गौतम बुद्ध ने अपने किसी शिष्य को सनातन धर्म पर आक्रमण के लिए नहीं उकसाया, न ही उन्होंने अन्य धर्मों के विनाश की बात कही। यदि कालांतर में लोग उनके पदचिन्हों पर नहीं चले तो दोष हमारा है। 
आज आवश्यकता उनका विरोध करने की है जो यह कहते हैं कि उनका मत ही सर्वश्रेष्ठ है और अन्य मतों के अनुयायियों को जीवन का अधिकार नहीं है।
हम अत्यधिक सौभाग्यशाली राष्ट्र हैं कि भारतीय मूल का कोई भी मत शैव, शाक्त, वैष्णव, बौद्ध, जैन, सिख आदि अन्य धर्म व मतों के उच्छेद की चर्चा नहीं करता। अपितु सभी लोगों को शान्ति से अपने अपने आचार विचार को मानने की स्वतंत्रता देता है। हम तो हम तो चार्वाक जैसे नास्तिक का दर्शन भी स्वीकार कर भारतीय वाङ्मय में स्थान प्रदान करते हैं।
बौद्धों और सनातनियों के मध्य जो झगड़े के आरोप लगते हैं मुझे निजी स्तर पर समझ नहीं आते। जो समाज मुक्त हृदय से महाभारत काल में यवनों, शकों, हूणों से सम्बन्ध स्थापित करता है। चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में यूनानियों से व्यापारिक व बौद्धिक सम्बन्ध स्थापित करता है। प्रथम शताब्दी में ईसा मसीह को भारत आकर ज्ञान प्राप्त करने का अवसर देता है। दूसरी तीसरी शताब्दी में अरबों से व्यापार करता है वह बौद्ध धर्म के लोगों को लेकर इतना असहिष्णु रहा हो समझ नहीं आता। हाँ यह हो सकता है कि राजे महाराजों ने धर्म का नाम लेकर अपना उल्लू सीधा किया हो और निरीह जनता को बौद्ध व सनातन धर्म के नाम पर लड़ाया हो।
तो हाथ जोड़कर समस्त पाठकों से निवेदन है कि बुद्ध को बुद्ध ही रहने दें और बुद्ध बनें। गौतम बुद्ध न सही बुद्धिमान सही।

7 टिप्‍पणियां:

  1. शेयर करने के लिए हार्दिक आभार बड़े भाई

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  2. अत्यंत सार्थक आलेख!!!

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  3. बहुत ही बढ़िया प्रतिउत्तर दिया आपने सराहनीय आलेख।
    सादर

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  4. जी विमल भाई , कुछ निठल्ले फेसबुकिया व्यर्थ के विवादों को जन्म देना अपनी शान समझते हैं | पर वे नहीं जानते चाँद पे धूल फेकेंगे तो उनका मुँह ही धूमिल हो जाएगा | बुद्ध को बहुत अच्छा परिभाषित किया आपने | यही सच है | बुद्ध , बुद्ध हैं | पर कोई बुद्धिमान ही उनकी गरिमा को जान और पहचान सकता है मूढ़ मति वालों को इसका ज्ञान कहाँ |

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