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गुरुवार, 12 मई 2022

वृद्धों की उचित देखभाल व उनके दायित्व

प्रायः फेसबुक पर चर्चा होती है कि फेसबुक पर तो माँ बाप की फोटो चेंप देते हैं और फादर्स डे-मदर्स डे मनाते हैं। माँ बाप वृद्धाश्रम में पड़े होते हैं। सबसे बड़ी गलतफहमी ये है कि सभी वृद्ध जिनकी संतानें वृद्धों की उचित देखभाल नहीं करतीं वे वृद्धाश्रम में हैं। सच यह है कि बहुत कम ही वृद्ध सौभाग्यशाली हैं जो वृद्धाश्रम में रहते हैं। अधिकांश तो बेटे बहुओं की गाली गलौज सुनते हैं या फिर तंग आकर घरबार  छोड़े हुए सड़कों पर टहलते हैं। 
ये वे माँ बाप हैं जिनमें से कुछ ने अपने बच्चों की बहुत बेहतर ढंग से परवरिश की है। थोड़े बहुत ऐसे भी हैं जो शायद इसी योग्य हैं कि वे बहू बेटों की गालियाँ सुनें। लेखक बहुत दुखी है यह देखकर कि लोग संतानों का तो रोना रोते हैं लेकिन संतान के प्रति उत्तरदायित्वों से मुँह मोड़ लेते हैं। लेखक बड़ा प्रसन्न होता है किसी वृद्ध को तंग देखकर क्योंकि लेखक का अपना अनुभव है। बहुत से मामलों में लेखक ने तंग वृद्धों को देखकर उनका इतिहास खंगाला तो अधिकांश मामलों में यही पता चला कि वृद्धों ने जो बोया वही काट रहे हैं। उन अभिभावकों का क्या जो जुए और पार्टियों में अपना समय गुजार देते हैं। न तो स्कूल की फीस समय पर जमा होती है, न कापी किताबों की उचित व्यवस्था, बालक बालिकाओं के भविष्य को लेकर अध्यापकों से परामर्श, न शुभचिंतकों के द्वारा बालक बालिकाओं की शिकायत किये जाने पर उचित कार्यवाही, बीमार होने पर सही इलाज की उपेक्षा। उन माँओं का क्या? बच्चों को दूध नहीं पिलातीं, पास नहीं सुलातीं, देखभाल आया करती है, कुछ बड़े होने पर बच्चे हास्टल में, भावनात्मक लगाव शून्य। हाँ, बच्चे इतना समझते हैं कि माँ बाप एटीएम हैं जहाँ से पैसा निकलता है। जॉब लग गई तो उसकी भी जरूरत खत्म। पहले तो हम अच्छे माँ बाप बनें तब बनेगी बात। हम न तो अपनी पीढ़ी को मिल बाँटकर खाना सिखा पा रहे हैं, न परिवार में सहयोग सिखा पा रहे हैं, न उनके बन पा रहे हैं और उन्हें अपना बना पा रहे हैं। कुछ लोगों को यह अभिमान कि वे पैसा खर्च कर रहे हैं और कुछ लोग सारी जिम्मेदारी बच्चों पर ही डाल देते हैं।
मुझे यह तो नहीं पता कि बड़े होने पर किसके बच्चे अपने माँ बाप के साथ कैसा बर्ताव करेंगे लेकिन अपने आसपास इतना दिखाई देता है कि बहुत से माँ बाप अपनी जिम्मेदारी का सही निर्वहन नहीं कर रहे हैं। वे भी कल कहेंगे बच्चों को हमने पालपोस कर बड़ा कर दिया और आज बच्चे हमारी उपेक्षा कर रहे हैं। अरे भाई अभी धरती में एक बीज डालो। हरि इच्छा।खाद पानी मिल गया तो वह पौधा पेड़ बन ही जाएगा। लेकिन एक पौधा जिसकी उचित देखभाल हो तो क्या कहने। पौधा जड़ होता है लेकिन हमारे बच्चे जड़ नहीं हैं। वह हर उस क्रियाकलाप को अपने अवचेतन में बैठा लेते हैं जो हमारे द्वारा नित्यप्रति किया जाता है।
बच्चे अपने प्रति हुए व्यवहार को ही अवचेतन में नहीं रखते अपितु आपके अपने परिवार में अन्य लोगों से कैसे व्यवहार हैं इसे भी अपने अवचेतन में रखते हैं। जो माँ बाप रोज घर में किचकिच करते हों उनके बच्चे बड़े होकर अपने माँ बाप का सम्मान करेंगे इसकी सम्भावना कम ही है। आप अपने भाई बहनों से कटु सम्बन्ध रखें और निज सन्तानों से परस्पर प्रेम व सहयोग चाहें तो कठिन कार्य है।
प्रायः लोग कहानी सुना देते हैं कि एक लड़का था और किसी शहर में डीएम हो गया। उसका बाप उसके ऑफिस पहुँच गया। लोगों ने पूछा तो उसने कह दिया कि नौकर है। तो बाप का पारा गर्म। लोग प्रायः बाप के पक्ष में खड़े होते हैं लेकिन मैं लड़के के पक्ष में हूँ कि लड़के की भी कुछ समस्या रही होगी। मुझे याद है कि मैंने अपने पिता जी को एक दिन चाय बनाकर दी। वह चाय लेकर जमीन पर बिना किसी आसनी के पालथी लगाकर बैठ गए ऐसी उनकी आदत थी और उनके लिए बिल्कुल सामान्य। मैंने उनसे कई बार कहा कि कुर्सी पर बैठेंं या तख्त पर बैठ जाएं। लेकिन मेरा कहना बेअसर। अब मैं जमीन पर उस तरह बैठने का अभ्यस्त नहीं। बहुत क्रोध आया और अंततः मैंने चाय खड़े खड़े टहल कर पी क्योंकि अगर मैं कुर्सी पर बैठ जाता और आप वहाँ पहुँच जाते तो या तो मुझे मूर्ख समझते या अशिष्ट।
मुझे एक अन्य व्यक्ति का किस्सा याद है एक दिन मेरे पास आये और बोले भैया मुझे बहू रोटी सेंककर नहीं देती। यद्यपि मुझे पता था कि बहू ऐसी है नहीं लेकिन फिर भी मैंने अपनी पत्नी से उनकी बहू का पक्ष मालूम करवाया तो पता चला कि घर से लेकर खेत न तो उसका पति कोई सहयोग करता है और न बुड्ढे महाशय। मैंने बुड्ढे को बुलाकर पूछा तो बोले लड़के की नालायकी का हम क्या करें? हमारी अवस्था तो कुछ काम धंधे की रही नहीं कि जानवर चरा लाएं या खेत की रखवाली करें। मुझे कुछ समझ नहीं आया बात आयी गयी हो गई। 
एक दिन बुड्ढे मेरे पास एक समस्या लेकर आए। एक बाग वाले ने उनसे बाग की रखवाली कराई और अब उनकी मजदूरी नहीं दे रहा था। अब मुझे बहुत क्रोध आया लेकिन मैंने उनसे कुछ नहीं कहा सिर्फ इतना पूछा कि मुझे यह बताओ अपना चार बीघे खेत की रखवाली के लिए आपके शरीर में ताकत नहीं है और दूसरे का बारह बीघे का बाग बचाने की ताकत कहाँ से आ गई? बुड्ढे ने न तो मेरी बात का कोई जवाब दिया और न ही वे कोई जवाब देने की स्थिति में थे। 
ऐसा नहीं है कि सारी गलती बड़ों की ही हो बच्चे भी बहुत बार गलत लोगों की संगत में परिस्थितियों वश गलत निकल जाते हैं। हम हर जगह न उनका पीछा कर सकते हैं और न उन्हें बन्धन में रख सकते हैं। 
अन्त में, परिवार सबके सहयोग से चलता है चाहें वे बड़े हों या छोटे। सबको अपने अपने हिस्से के कार्य करते समय दूरगामी परिणाम पर भी सोचना चाहिए।

2 टिप्‍पणियां:

  1. विमल भाई , हम लोग भी सास-ससुर जी के साथ ही रहते हैं तो मेरी माँ के साथ तीनों भाई संयुक्त रूप से रहते हैं | मैंने कहीं पढ़ा था कि इंसान बुढापे में अपने संस्कारों से सेवा करवाता है पैसे से नहीं |सच है यदि आज मैं अपने वृद्ध हो रहे सास- ससुर को किसी वजह से प्रताड़ित करना शुरू कर दूं तो निश्चित रूप से कुछ साल बाद अपने जीवन के सांध्यकाल में मुझे अपने बच्चों से कोई आशा नहीं रखनी चाहिए | बस यही बात नहीं समझ पाते लोग | जैसा वे बो रहे उनको हर हाल में भविष्य में वही काटना है |आपका ये बेबाक लेख उसी दिन पढ़ लिया था पर आज टिप्पणी लिख पायी |अपने बड़ों के प्रति हमारी संवेदनशीलता ही हमारे बच्चों को संस्कार और सेवा का वो पाठ पढ़ा सकती है , जो किसी विद्यालय में नहीं पढ़ाया जा सकता |एक भावपूर्ण लेख के लिए साधुवाद और शुभकामनाएं|

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    1. हमारा भी संयुक्त परिवार है हम चार भाई व एक बहन हैं और आपस में बड़े तालमेल से रहते हैं, मेरे पिता जी अब नहीं हैं लेकिन मॉं जी हैं अभी। मैं भरसक प्रयास करता हूँ उन्हें व परिवार में अन्य किसी को कोई तकलीफ न हो। यह लेख तो दूसरों के जीवन में ताकाझांकी का परिणाम है। लेख को पढ़कर विस्तृत टिप्पणी के पुनः आभार

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