इस ब्लॉग के अन्य पृष्ठ

कक्षा के अनुसार देखें

गुरुवार, 10 जून 2021

अगले किसी मोड़ पर

ऐ! गुलब्बो,
ये तय है कि अगले किसी मोड़ पर मेरी तेरी राहें अलग हो जाएंगी। कुछ दूर तक एक दूसरे को शायद देखते भी रहें, किन्तु कहाँ तक? उसके बाद रहेंगी स्मृतियाँँ या वे भी नहीं। सौ वाट का बल्ब जलते ही पाँच वाट के बल्ब पर ध्यान कहाँ जाता है। फिर क्या प्रेम क्या घृणा दोनों को हृदय में रख पाना कठिन हो जाएगा। तो क्यों नहीं वर्तमान को मिठास से भर दें और घृणा का परिहास कर दें। अपने हृदय में झाँककर देखो और प्रेम तथा घृणा को पृथक पृथक पहचानने का यत्न करो। असफल हो गए न। जब प्रेम दिखता है तो घृणा नहीं और जब घृणा दिखाई दी तो प्रेम नहीं दिखाई दिया। क्यों? वास्तव में प्रेम और घृणा का पृथक पृथक अस्तित्व ही नहीं है। वे दोनों तो एक ही हैं। प्रेम और घृणा का एक एक कर दिखाई देना तो हमारी आँखों पर चढ़ी ऐनकों के कारण है। लाल गुलाब हरी ऐनक से बैंगनी दिखता है और पीली ऐनक से नारंगी। किन्तु गुलाब तो गुलाब ही है।
मैंने छोड़ दिया है तुममें भविष्य को देखना तुम भी छोड़ दो मुझमें अपने भविष्य को देखना। रेल की दो पटरियों की तरह साथ साथ होने का भ्रम मत पालो। दूर दूर रहकर भी जब तक साथ दिखाई पड़ रहे हैं तब तक स्लीपरों के सहारे टिके रहने का आनंद उठा लो। जैसे ही जंक्शन आयेगा दोनों का साहचर्य परिवर्तित हो जायेगा। फिर एक दूसरे के मार्ग की स्टेशनें पृथक हो जायेंगी।
तुम्हारा वर्तमान

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें