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सोमवार, 1 फ़रवरी 2021

दोहा-वार्ता

बड़े बड़ेन के संग मा, कबहु न घूमन जाय।
वह तौ खइहैं कोरमा, तुमका सूखी चाय।। (नीतीश नयन , हरदोई)
मिलिहै तुमका कोरमा, रहउ ढंग से संग।
टाँग बड़ेन की खींचि के, सदा राखिये तंग।। (विमल शुक्ल, हरदोई)
टांग बड़े कर खीचिहौ तो अपुनौ होइहौ तंग, 
बहुत दिनन ई ना बचे होइ जाये एक दिन जंग। (श्रद्धानन्द द्विवेदी, अमेठी)
तबलमंजनी ना करैं,ना हम मांगैं भीख ।
दादा हमसे दूर तुम,राखौ अपनी सीख।। (नीतीश नयन, हरदोई)
तबलमंजनी ना करउ, ना तुम मांगउ भीख।
इनका काटउ यहि तरह, जैसे सिर की लीख।। (विमल शुक्ल, हरदोई)
बड़े जो राखैं दाबि के, करैं न लघु की चिन्त।
हुईहै जंग जरूर तब, फल हुइहैं अनमन्त।। (विमल शुक्ल, हरदोई)

7 टिप्‍पणियां:

  1. हार्दिक आभार बड़े भाई, प्रणाम।

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  2. सुन्दर दोहा वार्ता

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  3. वाह अलहदा अंदाज सुंदर पोस्ट।

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  4. बड़ी रोचक दोहा वार्ता है विमल भाई।नहले पे दहला है सभी दोहे।

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    1. हार्दिक आभार बहन। आपकी टिप्पणी आह्लादित कर गई। नमन।

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