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गुरुवार, 20 अगस्त 2020

फकीर

बहुत बड़ी झोली लिए, गद्दी डटा फकीर।
क्षण में गंगा तीर है, क्षण में यमुना तीर।
क्षण में यमुना तीर, कर्म हैं घूम-घुमारे।
मन-बातों के वीर, विरोधी सभी पछारे।
बदल रहे हैं नित्य, दवाएं, काढ़ा, जड़ी।
अच्छे दिन हैं दूर, मुसीबत बहुत बड़ी।।

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढिया कुण्डली विधा में रचना रची आपने , विमल जी | गद्दी पर डटे इस फकीर की चहुँदिश जय -जयकार है | गागर में सागर सरीखी रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं आपको |

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    1. हार्दिक आभार बहन ब्लॉग पर आकर उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए।

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  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति ...

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