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सोमवार, 22 जून 2020

उकताकर

दूर कहाँ जायें जिंदगी से उकताकर?
यहीं रहते हैं थोड़ी दूरियाँ बनाकर।।
ज्यादा प्रेम मुझे हजम नहीं होता,
तुम रूठो, मैं खुश रहूँ तुम्हें मनाकर।।
चारों ओर समय के अजीब रँग बिखरे,
दो चार ही सही ले चलें हम भी चुराकर।।
रह लेंगे हम सड़क पर टेन्ट में प्यारे,
बनायेंगे नहीं अपना किसी का घर गिराकर।

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गुरुवार, 18 जून 2020

युद्ध-युद्ध

चलो युद्ध युद्ध खेल लेते हैं,
तुम हमें धकेल लो,
हम तुम्हें धकेल लेते हैं।
तनाव अच्छी चीज है,
तनाव का व्यापार करें।
तुम हमसे गुड़ ले लो,  
हम तेल लेने पर विचार करें।
घावों का होना फायदेमन्द है,
अपने अपने कुरेद लेते हैं।
जो दिमाग एकजुट हो रहे हों,
उन्हें हम भेद लेते हैं।
बड़े मियाँ तो बड़े भले, 
छोटे मियाँ पीछे चले।
ककड़ी तो कटी नहीं, 
तलवार से मिले गले।
भाई से खटर पटर जन्मजात,
जब चाहें उखाड़ दें तम्बू कनात।
पर विदेशी उल्लुओं का क्या करें,
घूँसा जड़ें मुँह पे या घींच पर धरें लात।

मंगलवार, 16 जून 2020

गोरी या काली

टकले भी चाहते हैं चाँद पे प्रकाश बढ़े,
खिले मुखमंडल पे चाँदनी श्रृंगार की।
कोई नवयुवती जो हिये प्रेम धारे हो,
आये अब सँवार दे जिन्दगी उधार की।
मन के महल बीच कम्पनों का वेग बढ़ा,
चाहता हिलाना नींव, प्रीति के पहाड़ की।
यूपी को जो मिले नही, तो भी कोई बात नहीं, 
काली हो या गोरी होय, बंग या बिहार की।।

सोमवार, 15 जून 2020

जीवन के रसास्वादन का मन्त्र

कितनी विकट परिस्थिति है। हमारे पास पैसा होता है, तड़क भड़क युक्त जीवन होता है, हमारी गिनती सफल लोगों में होती है, लोग हमसे ओटोग्राफ माँगते हैं और हमारे पास समय नहीं होता है कि हम कुछ सोंचें अपने आपके बारे में अपने परिवेश के बारे में। 
किन्तु इस बुलन्द इमारत पर जब कहीं कोई हल्की भी खरोंच आती है तो इमारत गिरनी शुरू होती है और पता चलता है कि अरे जिसे हम ताजमहल समझ रहे थे वह रेत का घरौंदा निकला। हम जिन लोगों से घिरे होते हैं वे एक एक कर खिसकने शुरू होते हैं हम अकेले हो जाते हैं तब लगता है जीवन व्यर्थ गया अब इसका अंत कर लो। गलती हमारी ही है अपने चारों और घिरे स्वार्थी लोगों को देखकर हम समझते हैं कि हम महत्वपूर्ण हैं और वे सब हमारे लिए बहुत उपयोगी हैं। दरअसल हमारे चारों ओर प्रायः उन लोगों का जमावड़ा होता है जिनके लिए हम उपयोगी होते हैं जैसे ही उनके लिए हमारी उपयोगिता समाप्त होती है वे खिसक लेते हैं। हम अकेले रह जाते हैं तब आत्महत्या एक विकल्प समझ में आता है। हमें एक दो लोग भी ऐसे नहीं मिलते जो यह समझाते कि सब कुछ खोकर भी शून्य से प्रारंभ किया जा सकता है।  कोई हानि ऐसी नहीं जिसकी भरपाई न हो सके। समय बड़े से बड़े घाव को भर देता है किन्तु हम अपने कैरियर में एक व्यक्ति ऐसा नहीं जोड़ पाते जो घाव पर मरहम लगा दे। कारण हम स्वयं पैसा, पद और प्रतिष्ठा पाकर जमाने को ठोकर लगाते हैं, तो जमाना हमें लगा देता है।
हम यन्त्रवत होकर जब जब जीने की चेष्टा करेंगे, यन्त्रणा प्राप्त करेंगे, मन्त्रवत जियेंगे तो मन्त्रणा मिलेगी। क्यों प्राप्त नहीं करते जीवन के रसास्वादन का मन्त्र? क्यों तिरस्कृत कर देते हैं उन्हें जो सिखा सकते हैं यह मन्त्र। यह मन्त्र कहीं बाहर नहीं है, हमारे अंदर है। वे लोग हमारे चारों ओर हैं जो इसका ज्ञान करा सकते हैं। हम रोज सोचते हैं कौन व्यक्ति या वस्तु हमारे लिए उपयोगी है, क्या कभी सोचा है कि हम स्वयं किस व्यक्ति या वस्तु का क्या कुछ भला कर सकते हैं। अगर सोचा है तो निश्चित ही हम धनी हैं और कोई भी परिस्थिति हमारी आत्महत्या के लिए नहीं बनी है।
बहुत बार हम संसार से छल करते हुए अपने आपको हुनरमन्द समझ लेते हैं। ध्यान दें उस समय हम स्वयं को छल रहे होते हैं और अपने लिए एक ऐसा जाल बुन रहे होते हैं जो हमारे ही गले में पड़ा है और एक झटके में कस सकता है। क्यों नहीं समझ में आता शरीर को और आत्मा को शान्तिमय व आनन्दमय बनाये रखने के लिए कोठी, कार, शराब और देर रात की पार्टियाँ नहीं अपितु श्रम से उपार्जित चार रोटियों की और अच्छी नींद की जरूरत होती है। हमारे बुरे वक्त में काम आयें हमें सांत्वना प्रदान करें इसके लिए भीड़ की नहीं सिर्फ एक मित्र की आवश्यकता होती है, इसलिए आठ अरब आबादी वाली इस दुनिया में अपना आकलन डिजिटल या मैनुअल फॉलोवरों, लाइक और कमेंट्स से न करें इससे करें कि कौन एक हमारे इशारे पर बिना कोई प्रश्न किए, बिना कोई अपेक्षा किए सिर्फ 5 मिनट हमारे पास बैठता है। यह विचार करें किसने हमको पिछली बार अपनत्व के साथ गाली दी थी या थप्पड़ लगाया था यकीन मानिए वह व्यक्ति हमें निराशा से मरने नहीं देगा। वह हमें रोटी न दे पैसे न दे सम्बल अवश्य प्रदान करेगा ताकि हमारा संसार पूर्ण हो सके। मुझे प्रसन्नता है निजी तौर पर मुझे अपनी सद्भावनाओं के कन्धे पर उठाये रखने वाले स्वजन, परिजन और मित्रजन मेरे साथ हैं। हाँ यह हो सकता है वे अभिजन न हों, अभिजन मैं भी नहीं।
विमल 9198907871

शनिवार, 13 जून 2020

कोई था शुक्ला

सोंचता हूँ एक कबाड़ साहित्यिक अंतराष्ट्रीय संस्था मैं भी बना डालूँ, स्वंभू कवि, कवि नहीं आशुकवि, आशुकवि नहीं कविराज, नहीं नहीं कविराय अपने लिए नाम के आगे पीछे कुछ लगना चाहिए कि नहीं। स्वयं भू संस्था बनाऊँ और उसका सर्वे सर्वा  बनूँ। खुद तो कुछ लिख पाता नहीं, न मूल्यांकन ही आता है, बस प्रमाण पत्र ही तो बांटना है कम्प्यूटर पर एक चित्र बनाना है उस पर कविवर का नाम टीपना है और बन गया सम्मान पत्र। कवि खुश, कविता निराश है हुआ करे। लोगों के दिल की भड़ास निकल जाती है कुछ लाइक कुछ कमेंट और हो गए हम ग़ालिब के परबाबा और तुलसी के परपोते। जब हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखा जाएगा इतनी सारी संस्थाओं में मेरी वाली कहाँ होगी क्या लेना देना, किन्तु होगी तो कहीं इसका सन्तोष रहेगा। कितनी बेइज्जती होगी यार जब लोग कहेंगे यार वो एक था अयारवी या पिहानवी कोई नाम याद नहीं आ रहा वो कोई शुक्ला था कभी कभार सुना है कुछ लिखता था कैसे सहन करूँगा हाँ कम्प्यूटर पर थोड़ी मेहनत हो जाए तो काम बने। लोग याद करेंगे लिखता तो बेकार था किंतु पुरस्कार बाँटकर मुझे अमर कर गया।
अब करूं क्या अपना तो हाल यह है अजगर करे न चाकरी, आगे क्या लिखूँ आप समझदार हैं तभी तो कोई कविता पूरी नहीं कोई किताब पूरी नहीं। साहित्य के पास नहीं साहित्य से दूरी नहीं।  

तेरा क्या होगा काली

सुबह जब घर से निकलता हूँ तो इसलिए कि घर पर कोई है जिसके प्रति कुछ कर्तव्य है, शाम को जब घर लौटता हूँ तो सिर्फ इसलिए कि घर पर कोई है जो लगाम थामे है कि लौट आओ। दिन भर घर में क्या होता है उसमें दखल कहाँ दे मिलता है। टीवी पर क्या चलना है मैं कब तय कर पाया सारे सीरियल तो उसके हैं और उसके पसन्दीदा प्रोग्राम भी तो उसी समय आते हैं जब मैं होता हूँ घर में। वह जो 100 रूपये पा जाती है वो उसके हैं सिर्फ उसके और मेरे 10 रुपयों पर हक होता है परिवार के हर शख्स का। बच्चे की चड्ढी, उसका ब्लाउज, स्कूल की फ़ीस पड़ोस में मुँह दिखाई के लिए पैसे सब मेरी जिम्मेदारी है, फिर भी लांछन मैं स्त्री का अपकारी हूँ। बहू वो पसन्द करती हो वही दामाद मुझे तो चिन्ता करनी पड़ती है विवाह में खर्च कहाँ से होगा। वो बता देती है कितने थान जेवर कितने थान कपड़ा, कौन सा होटल कभी समझौता नहीं मेरी जेब और अपनी डिमांड से। वो जो कभी कभार किसी को ठग लेता हूँ किसके लिए वो जो घर पर है। वह एक ओर पूछती है खाने में क्या बनेगा और जवाब की प्रतीक्षा किये बिना दे देती है फैसला कि वह क्या बना कर आयी है। अगर वाल्मीकि होने की राह पर आऊँ तो तेरा क्या होगा काली।
ये जो ऊपर लिखा है आधा सच है वह है तो मुझे पता है शाम को जाना कहाँ है, खाना कहाँ है, सुबह घर से निकलना क्यों है, बॉस की झिड़कियाँ खानी क्यों हैं, वो है तो मुझे पता है सोने चाँदी का भाव ही नहीं, लोन तेल गैस का भी। वो है तो पता है कि एक अदद घर भी बहुत जरूरी चीज है।

सोमवार, 8 जून 2020

विद्यालय 15 अगस्त के बाद खुलेंगे?

अब विद्यालय 15 अगस्त के बाद खुलेंगे। कोई बात नहीं जब चाहे खुलें। किन्तु समस्या आजीविका की है मुझे दूसरों का नहीं पता किसी की समस्याएं मुझसे कुछ कम हो सकतीं हैं किसी की मुझसे कुछ ज्यादा। मेरी समस्या यह है कि गाँव का स्कूल दिसम्बर, जनवरी, फरवरी में फीस प्रायः जमा नहीं होती मार्च , अप्रैल में जमा होती है। जो किसान हैं वह प्रायः अप्रैल मई में फीस जमा करते हैं जो श्रमिक हैं वह होली पर जब परदेश से घर लौटते हैं तब जमा करते हैं। होली के अगले दिन से ही स्कूल बन्द होने से दिसम्बर से मार्च तक का शुल्क भी लॉक हो गया, सिर्फ एक अभिभावक ने 18 मार्च के बाद 2 जून को केवल 1000 रुपया जमा किया है। मेरे अध्यापकों को धन्यवाद जिन्होंने गरीब होने के वाबजूद मुझ पर वेतन के लिए दवाब नहीं बनाया। वे मेरी और मैं उनकी तंगी को बेहतर समझते हैं यही मेरा सौभाग्य है। जो पैसा पूर्व में सञ्चित था वह मई में ही खत्म हो गया उसके बाद परिजनों पर निर्भर हूँ अभिभावकों से इतना भी न बना कि कभी पूछ ही लेते और दिसम्बर से मार्च न सही तो फरवरी तक का ही शुल्क जमा करते क्योंकि किसान प्रायः लॉक डाउन से अप्रभावित है और वह चाहे तो शुल्क जमा कर सकता है। जिन महीनों में स्कूल बन्द रहा उन पर चर्चा बाद में भी हो सकती है। एक उम्मीद थी कि जुलाई में स्कूल खुलेंगे तो कुछ राहत मिलेगी किंतु अब जब स्कूल 15 अगस्त के बाद खुलेंगे तो समझ नहीं आ रहा कि कैसे स्वयं को सांत्वनाप्रदान करूँ और कैसेइ अपने अध्यापकों को मेरा निवेदन है अभिभावकों से कि कम से कम फरवरी व उसके पूर्व का शुल्क विद्यालय में जमा करा दें तो बड़ी कृपा होगी और सरकार से प्रार्थना है कि यदि स्कूल खोलना सम्भव न हो तो प्राइवेट विद्यालयों को अल्पावधि का कर्ज ही उपलब्ध करा दें ताकि विद्यालयों को जीवित रखा जा सके वरना कुछ विद्यालयों का बन्द होना निश्चित समझें। ध्यान रहे मैं झोली नहीं फैला रहा विद्यालय की मदद की बात करा हूँ आखिर विद्यालय के अध्यापक व कर्मचारियों के पास भी एक पेट है और उनके बाल बच्चे भी हैं|

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रविवार, 7 जून 2020

वन्देमातरम्


15/03/2020
शस्त्र पवित्रं वन्दे मातरम्|
अस्त्र पवित्रं वन्दे मातरम्|
दुष्ट हृदय विस्फारक यन्त्रं,
शब्द विचित्रं वन्दे मातरम्|
म्लेच्छ मनं भयदायक घोषम्|
दिव्यमतिं सुखदायक घोषम्|
संस्कार उन्नायक घोषम्|
मनुजभाव परिचायक घोषम्|
घोष प्रचण्डं वन्दे मातरम्|
शान्तमना भव मूढमते त्वं|
राष्ट्रमना भव द्रोहमते त्वं|
मोदमना भव क्षीणमते त्वं|
भक्तिमना भव पापमते त्वं|
भाव अतुल्यं वन्दे मातरम्|
भारतीय भू एकक शक्तिं|
राष्ट्र-भाल अभिषेकक शक्तिं|
विश्व-बन्धुता प्रेरक शक्तिं|
ज्ञान-बुद्धि उन्मेषक शक्तिं|
शक्ति अनिन्द्यं वन्दे मातरम्|
 



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25 जगह नौकरी

अनामिका




 कहाँ तो एक अदद नौकरी की तलाश में एड़ियाँ खत्म हो जाती हैं और मिलती नहीं है। इधर तो एक ही आदमी के लिए बाढ़ आ गयी। अगर फीडिंग न होती तो फर्जी वाड़ा पकड़ में नहीं आता वाह। मेरा प्रश्न यह है कि क्या वेतन जारी करने के लिए ड्यूटी के दिनों या समय का कोई मानक नहीं है, या आँख मीचकर भुगतान हो जाता है। दूसरे क्या कोई अकेला व्यक्ति इतना सक्षम हो सकता है कि 25 स्थानों पर अपनी सेवाएं प्रदान करे। यदि एक व्यक्ति एक दिन में एक जगह अपनी ड्यूटी लगाए और दूसरे दिन दूसरी जगह तो भी वह माह में एक बार भी अपने कार्य स्थल पर नहीं पहुंचेगा क्योंकि छुट्टियाँ भी होती हैं। जाहिर है दाल कहीं ज्यादा काली है जितनी दिखाई देती है और पूरा विभाग इसके लिए दोषी है। मेरा हृदय मानता नहीं था कि कैसे श्री कृष्ण एक होते हुए भी अपनी हर रानी के पास बने रहते थे या फिर कैसे बालि जिस द्वार से निकलते थे उसी पर भगवान उसे विराजमान मिलते थे। अनामिका शुक्ला के इस प्रकरण से विश्वास हो गया।
धुंधली तस्वीर ही नहीं है बहुत कुछ धुंधला है सिर्फ वेतन का मसला नहीं है, इस प्रकरण में 1 को छोड़कर शेष 24 का रोजगार भी छीना गया उसकी भरपाई कौन किससे करायेगा।
समाचार कहता है कि अनामिका ने शिक्षा विभाग को धोखा दिया मैं कहता हूँ कि शिक्षा विभाग ने पूरे देश को धोखा दिया। सच तो यह है तमाम अध्यापक अध्यापिकाएं स्कूल गए बिना ही वेतन आहरित कर लेते हैं और इसे सब जानते रहते हैं। एक महिला शिक्षा मित्र को मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ जिनके पति nprc के पद पर हैं JHS के प्रधानाचार्य और पत्नी शिक्षा मित्र हैं कभी स्कूल नहीं गयीं। मुझसे नाम मत पूछना मैं बहुत छोटा आदमी हूँ, बड़े बड़े मुँह नहीं खोलते जबकि उन्हें मुँह खोलने का वेतन मिलता है।



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सोमवार, 1 जून 2020

मील के पत्थर


१५/१२/१९९७
! मील के पत्थर तुम्हें मेरा नमन।
पत्थर नहीं तुम हो गतागत ज्ञान दाता।
है प्रीत जिसको लक्ष्य से वह जान पाता।
किस दिशा में और कितना है गमन।
! मील के पत्थर तुम्हें मेरा नमन।
पथ की महत्ता मूक होकर भी बताते।
भटके हुओं को मार्ग पर भी तुम लगाते।
और करवाते वियुक्तों का मिलन।
! मील के पत्थर तुम्हें मेरा नमन।
पथ पर चला जो करके अनदेखी तुम्हारी।
उसने कदाचित ही स्वयँ की गति संवारी।
प्राप्त कर पाया सफलता की शरण।
! मील के पत्थर तुम्हें मेरा नमन।
 




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