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शुक्रवार, 10 नवंबर 2017

क्षमता क्या है



अपने नौनिहालों की समस्याओं को समझ न पाना हमारे लिए प्रायः दुखद होता है? हमें यह पता होता है उन्हें जूते, मोज़े, कपड़े, बस्ता, खाने-पीने की वस्तुएं और जेबखर्च  इत्यादि कब और कितना चाहिए| किन्तु उन्हें हमसे कब और कितना मार्गदर्शन चाहिए इसकी उपेक्षा करते हैं| बच्चा हमसे बात करने का प्रयास करता है और हम उससे बचने का प्रयास करते हैं| कभी अज्ञानतावश, कभी अहंकारवश तो कभी समयाभाव में| मेरा यह लेख ऐसे अभिभावकों के लिए उपयोगी होगा ऐसी मेरी आशा है|
मेरा एक बच्चा एक बिस्कुट का पैकेट लेकर खड़ा है, दूसरा बच्चा उसकी ओर ताकते हुए खड़ा है अथवा उससे भी बिस्कुट देने के लिए आग्रह करता है| पहला बच्चा मना कर देता है| भाई वह क्यों बांटे अपनी प्रॉपर्टी किसी के साथ| दूसरा बच्चा आपसे शिकायत करता है बड़ा भाई आपको बिस्कुट नहीं दे रहा है| आप के लिए सरल है आप जेब से पैसा निकलते हैं और बच्चे को दे देते हैं| वह खुश और आपकी समस्या हल| भाई साहब बहुत बड़ी गड़बड़ कर दी आपने| आपने अपने पहले बच्चे को यह समझाने का बहुत बड़ा अवसर खो दिया कि खाने पीने की चीजें आपस में मिल बाँटकर खाते हैं तथा उस पर छोटे भाई का भी कुछ अधिकार है उसे यह अहसास हो| आपको प्रयास करना चाहिए कि उन्हें ऐसे समझाएं कि कम से कम उस क्षण तो हम उन दोनों के बीच वह पैकेट तो बंटवा ही दूंगा|
एक दिन मेरे पास एक फोन आया| पापा आज मैं बहुत अपसेट हूँ| बेटा कह रहा रहा था| “क्यों?” मैंने पूंछा| पापा मेरे प्री परीक्षा में बहुत कम नम्बर आये हैं| तो उससे क्या तुम मुख्य परीक्षा के लिए तो क्वालीफाई कर गये| हाँ पापा लेकिन बच्चे कह रहे हैं कि पिछले वर्ष एक लड़के के मुख्य परीक्षा में 225 नम्बर आये थे और मुख्य परीक्षा में वह फेल हो गया था| मेरे तो केवल 155 आये हैं| मैं कैसे पास हो सकूँगा? समस्या वाकई गम्भीर थी| आप क्या करते? मैंने उसे डेढ़ घंटे की विधिवत सलाह दी? वह मुख्य परीक्षा में पास भी हुआ| पास होने के बाद एक दिन मुझसे कह रहा था कि पापा आप ने जो उस रात मुझे समझाया था मैंने तो किताबी बातें समझकर हवा में उड़ा दिया काश मैंने उसे सच माना होता तो मुख्य परीक्षा में मेरी रैंक और अच्छी होती| अब मेरी तरफ से सोंचिये मैं सोंच रहा था कि बेटा अगर मैंने तुम्हें उस दिन कुछ भी न समझाकर तुम्हे तुम्हारे हाल पर छोड़ दिया होता तो शायद तो तुम फेल हो जाते|
आप भी समझ लें वह सार जो मैंने उसे डेढ़ घंटे में समझाया था| बहुतों के लिए उपयोगी होगा| जीवन में जब भी परीक्षा की घड़ी आये तो शान्त व निर्विकार बनो| दूसरों का प्रदर्शन मत देखो बल्कि यह सोंचो तुमसे परीक्षा में परीक्षक की क्या अपेक्षा है और उस पर खरा उतरने के लिए तुम्हें कितना प्रयास करना है| यह भी ध्यान रहे कि तुम्हारी अपनी क्षमता क्या है? सदैव उतनी ही मेहनत करो जितने की तुम्हारा वजूद गवाही देता है| ध्यान रखो जीवन में जितना जरूरी है आगे बढ़ने के उत्कण्ठा होना उतना ही जरूरी है तन मन से प्रसन्न रहने अभिलाषा होना| अपना काम करो अपने लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए| अपना सर्वोत्कृष्ट दो बिना रिजल्ट की चिन्ता किये| रिजल्ट के लिए चिन्तातुर होना बहुतों का रिजल्ट बिगाड़ देता है| दबाव व तनाव प्रायः मनुष्य को उसके स्वाभाविक प्रदर्शन से पीछे बनाये रखता है| ध्यान रहे जीवन को खेल की तरह लेंगे तो सदैव फायदे में रहेंगे| खेल में हार या जीत ज्यादा महत्व नहीं रखती बल्कि आपका उत्कृष्ट खेलना महत्व रखता है| हारते तो अच्छा खेलने वाले भी हैं और जीत तो कभी कभी खराब खेलने भी जाते हैं| आज वह बच्चा IIT BHU का छात्र है और मैं समझता हूँ इसमें 75 प्रतिशत उस बच्चे के प्रयास का प्रतिफल है तो 25 प्रतिशत मेरे या मेरे जैसे दूसरों की सही सलाहों का भी प्रतिफल है|
तो कृपया अपने बच्चों को समझें और और उन्हें बेहतर बनाने में अपना योगदान करें|


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