आप अंगीठी नहीं है,
आपकी देह की गरमई,
उस रजाई का कमाल है,
जिसमें लिपटे रहे हो रात भर।
और जिसे मैंने तुम्हारे,
ऊपर से नीचे तक,
दबाये रक्खा है,
रातों में जागकर।
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सोमवार, 27 नवंबर 2017
गरमई
रविवार, 26 नवंबर 2017
चौथा बन्दर
गाँधी जी का चौथा बन्दर,
आसपास दिख जाता है।
कुछ मत बोले मत कुछ सुने,
न ऊपर नजर उठाता है।
मोबाइल या कम्प्यूटर पर,
नजर गड़ाये जारी है।
डिजिटल वर्ड में धँसा हुआ है,
भूला दुनियादारी है।
शनिवार, 25 नवंबर 2017
खुशफहमी
चलो खुशफहमी का ढोल बजाते हैं।
पहली दिसम्बर अभी दूर है,
मेरे सपनों में वोट गिने जाते हैं,
हम बिना लड़े ही चेयर पर हैं
और चेयरमैन हुये जाते हैं।
पहली दिसम्बर अभी दूर है,
मेरे सपनों में वोट गिने जाते हैं,
हम बिना लड़े ही चेयर पर हैं
और चेयरमैन हुये जाते हैं।
यहाँ पहली दिसम्बर से मतलब कोई भी तिथि जिस पर मतगणना होनी है और लोग जिसकी प्रतीक्षा में हैं|
मंगलवार, 14 नवंबर 2017
सियासत
बात जब
करो शराफ़त से करो।
जब न सुने
तो लियाकत से करो।
बात सब
सुन लेंगे तुम्हारी मित्रों,
घुमा फिरा
के करो, सियासत से करो।।
शनिवार, 11 नवंबर 2017
क्या ऐसा हो सकता है?
मन की कितनी परतें खोलूँ|
बोलूँ तो मैं क्या क्या बोलूँ?
और बोल कर निर्भय डोलूँ|
क्या ऐसा हो सकता है?
मन संशय खो सकता है?
वादे बड़े बड़ी आशायें|
उर पर उगी कठोर शिलायें|
जन जन को कैसे समझायें?
क्या ऐसा हो सकता है?
जन का भय खो सकता है?
गंगा भी मैं यमुना भी मैं,
सरस्वती की संरचना मैं|
लेकिन कितना सूक्ष्म मना मैं?
क्या ऐसा हो सकता है?
मेरा मैं खो सकता है?
शुक्रवार, 10 नवंबर 2017
शरारत
कल कली ने मुस्कुराकर फिर शरारत की|
एक भँवरे ने बड़ी सच्ची शिकायत की|
इस शिकायत पर कुचल डाला गया भँवरा,
हर समय पर भीड़ ने इतनी हिमाकत की||
क्षमता क्या है
अपने
नौनिहालों की समस्याओं को समझ न पाना हमारे लिए प्रायः दुखद होता है? हमें यह पता
होता है उन्हें जूते, मोज़े, कपड़े, बस्ता, खाने-पीने की वस्तुएं और जेबखर्च इत्यादि कब और कितना चाहिए| किन्तु उन्हें हमसे
कब और कितना मार्गदर्शन चाहिए इसकी उपेक्षा करते हैं| बच्चा हमसे बात करने का
प्रयास करता है और हम उससे बचने का प्रयास करते हैं| कभी अज्ञानतावश, कभी अहंकारवश
तो कभी समयाभाव में| मेरा यह लेख ऐसे अभिभावकों के लिए उपयोगी होगा ऐसी मेरी आशा
है|
मेरा एक
बच्चा एक बिस्कुट का पैकेट लेकर खड़ा है, दूसरा बच्चा उसकी ओर ताकते हुए खड़ा है
अथवा उससे भी बिस्कुट देने के लिए आग्रह करता है| पहला बच्चा मना कर देता है| भाई
वह क्यों बांटे अपनी प्रॉपर्टी किसी के साथ| दूसरा बच्चा आपसे शिकायत करता है बड़ा
भाई आपको बिस्कुट नहीं दे रहा है| आप के लिए सरल है आप जेब से पैसा निकलते हैं और
बच्चे को दे देते हैं| वह खुश और आपकी समस्या हल| भाई साहब बहुत बड़ी गड़बड़ कर दी
आपने| आपने अपने पहले बच्चे को यह समझाने का बहुत बड़ा अवसर खो दिया कि खाने पीने
की चीजें आपस में मिल बाँटकर खाते हैं तथा उस पर छोटे भाई का भी कुछ अधिकार है उसे
यह अहसास हो| आपको प्रयास करना चाहिए कि उन्हें ऐसे समझाएं कि कम से कम उस क्षण तो
हम उन दोनों के बीच वह पैकेट तो बंटवा ही दूंगा|
एक दिन
मेरे पास एक फोन आया| पापा आज मैं बहुत अपसेट हूँ| बेटा कह रहा रहा था| “क्यों?”
मैंने पूंछा| पापा मेरे प्री परीक्षा में बहुत कम नम्बर आये हैं| तो उससे क्या तुम
मुख्य परीक्षा के लिए तो क्वालीफाई कर गये| हाँ पापा लेकिन बच्चे कह रहे हैं कि
पिछले वर्ष एक लड़के के मुख्य परीक्षा में 225 नम्बर आये थे और मुख्य परीक्षा में
वह फेल हो गया था| मेरे तो केवल 155 आये हैं| मैं कैसे पास हो सकूँगा? समस्या वाकई
गम्भीर थी| आप क्या करते? मैंने उसे डेढ़ घंटे की विधिवत सलाह दी? वह मुख्य परीक्षा
में पास भी हुआ| पास होने के बाद एक दिन मुझसे कह रहा था कि पापा आप ने जो उस रात
मुझे समझाया था मैंने तो किताबी बातें समझकर हवा में उड़ा दिया काश मैंने उसे सच
माना होता तो मुख्य परीक्षा में मेरी रैंक और अच्छी होती| अब मेरी तरफ से सोंचिये
मैं सोंच रहा था कि बेटा अगर मैंने तुम्हें उस दिन कुछ भी न समझाकर तुम्हे
तुम्हारे हाल पर छोड़ दिया होता तो शायद तो तुम फेल हो जाते|
आप भी
समझ लें वह सार जो मैंने उसे डेढ़ घंटे में समझाया था| बहुतों के लिए उपयोगी होगा|
जीवन में जब भी परीक्षा की घड़ी आये तो शान्त व निर्विकार बनो| दूसरों का प्रदर्शन मत
देखो बल्कि यह सोंचो तुमसे परीक्षा में परीक्षक की क्या अपेक्षा है और उस पर खरा
उतरने के लिए तुम्हें कितना प्रयास करना है| यह भी ध्यान रहे कि तुम्हारी अपनी
क्षमता क्या है? सदैव उतनी ही मेहनत करो जितने की तुम्हारा वजूद गवाही देता है|
ध्यान रखो जीवन में जितना जरूरी है आगे बढ़ने के उत्कण्ठा होना उतना ही जरूरी है तन
मन से प्रसन्न रहने अभिलाषा होना| अपना काम करो अपने लक्ष्य को ध्यान में रखते
हुए| अपना सर्वोत्कृष्ट दो बिना रिजल्ट की चिन्ता किये| रिजल्ट के लिए चिन्तातुर
होना बहुतों का रिजल्ट बिगाड़ देता है| दबाव व तनाव प्रायः मनुष्य को उसके
स्वाभाविक प्रदर्शन से पीछे बनाये रखता है| ध्यान रहे जीवन को खेल की तरह लेंगे तो
सदैव फायदे में रहेंगे| खेल में हार या जीत ज्यादा महत्व नहीं रखती बल्कि आपका
उत्कृष्ट खेलना महत्व रखता है| हारते तो अच्छा खेलने वाले भी हैं और जीत तो कभी
कभी खराब खेलने भी जाते हैं| आज वह बच्चा IIT BHU का छात्र है और मैं समझता हूँ
इसमें 75 प्रतिशत उस बच्चे के प्रयास का प्रतिफल है तो 25 प्रतिशत मेरे या मेरे
जैसे दूसरों की सही सलाहों का भी प्रतिफल है|
तो कृपया
अपने बच्चों को समझें और और उन्हें बेहतर बनाने में अपना योगदान करें|
मंगलवार, 7 नवंबर 2017
टीवी
ताज्जुब होता है कि टेलीविज़न भी क्या
जादुई चीज समाज को प्राप्त हुई| मिथक साकार हो गये| हजारों मील दूर के दृश्य
मनुष्य घर बैठे ही देख सुन लेता है| समाचार, नाटक, फ़िल्में, खेलकूद, नाचगाना,
साहित्य, संगीत, कला और तमाम कल्पनातीत चीजें| आजकल तो तमाम शैक्षणिक विषयवस्तु भी
इसके माध्यम से प्रस्तुत की जाने लगी है, फिर भी आजतक टेलीविजन बुद्धू बक्से की
अपनी तस्वीर से मुक्त नहीं हो पाया है|
अब आप देखें एक फिल्म देखने के लिए टीवी
के किन्हीं किन्हीं चैनलों पर 5 से 6 घंटे तक चाहिए होते हैं| हर 10-15 मिनट के बाद
5-10 मिनट का विज्ञापन! कभी कभी तो लगता है कि फिल्म चैनल देख रहे हैं या विज्ञापन
चैनल| इस मामले में धारावाहिक चैनलों के क्या कहने? दिमाग पकाने की कला में
बिल्कुल प्रवीण| अधिकांश पारिवारिक धारावाहिकों में कहानी शुरू तो होती है पर खत्म
नहीं होती अगर खत्म होता है तो धारावाहिक ही खत्म हो जाता है| एक ही फ्लैश बैक बार
बार दिखाना तो बहुत बार हजम ही नहीं होता|
न्यूज़ चैनल उनका क्या? उनके पास वैसे भी
कहने के लिए ज्यादा कुछ नहीं होता| एक मुद्दा पकड़ कर जब टी आर पी बनी रहे तब तक
दिखाया जाता है| और इस तरह एंकर बार बार जोर देकर कहता कि लगता है अगले ही पल उसे
कुछ ऐसा पता लगेगा जो शायद इस लोक में सम्भव नहीं| लेकिन 30 मिनट बाद जब एंकर विषय
को बदल देता है तब समझ में आता है कि समाचार सुनने से तो अच्छा था भैंस चरा लाता|
आजकल एक धारावाहिक देख रहा हूँ स्टार
भारत पर “आयुष्मान भवः”| क्या कहानी है पूर्व जन्म पर आधारित| अविनाश नाम का एक
चरित्र अपनी युवावस्था में (यद्यपि उसकी उम्र के बारे में धारावाहिक में कुछ भी
नहीं कहा गया है फिर 25 से कम का तो देखने में नहीं लगता) मारा जाकर दुबारा कृश के
रूप में जन्म ले लेता है वह 8 वर्ष की उम्र में अपने हत्यारों से बदला लेने के
क्रम में दुबारा उनकी गोली का शिकार होता है और बच जाता है 13 साल बाद पुनः लौटकर
हत्यारों के पास बदला लेने की लिए आता है| इस प्रकार कुल इक्कीस वर्ष बीत जाते हैं
यदि अविनाश जीवित होता तो उसकी उम्र कोई 45-46 वर्ष होती| बड़ी मजे की बात यह है
सुधीर, विक्रांत, समायरा जैसे पात्रों की न तो उम्र बदलती है न चेहरे पर उम्र का
प्रभाव दिखता है| विक्रांत आज भी जवान है, समायरा आज भी हसीन है, सुधीर आज भी
पालतू कुत्ता है| अरे भाई थोड़ी तो मेहनत करो|थोड़ा तो दिमाग लगाओ तो हमारे जैसों के
दिमाग पकाओ तो अच्छा लगेगा|
एक और मसला है फिल्मों से जुड़ा| “पद्मावती”
फिल्म पर बड़ा विवाद है, निर्माता, निर्देशक व लेखक हर कोई अभिव्यक्ति की आजादी की
दुहाई देता फिर रहा है| ऐसे ही एक धारावाहिक चला था “जोधा अकबर”| कौन कहता है कि
आपको अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है, किन्तु अभिव्यक्ति की ऐसी आजादी आप क्यों चाहते
हैं जो इतिहास को विकृत कर दे?
तो बन्धु टीवी देखें जरूर पर संभलकर
कहीं ऐसा तो नहीं आप भी मेरी तरह बुद्धू बने बैठे हैं|
सोमवार, 6 नवंबर 2017
चाय और नमकीन
तन बेचारा लोमड़ी, लेकिन मन लँगूर।
डाल अगर किञ्चित् झुके, खा पाऊँ अँगूर।।1।।
एक साथ में दे गयी, मजे सुन्दरी तीन|
सुबह सलोनी धूप सँग, चाय और नमकीन।।2।।
डाल अगर किञ्चित् झुके, खा पाऊँ अँगूर।।1।।
एक साथ में दे गयी, मजे सुन्दरी तीन|
सुबह सलोनी धूप सँग, चाय और नमकीन।।2।।