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शनिवार, 24 दिसंबर 2016

खिड़की

खिड़की दीवार पर टंगी है, नहीं धँसी है, नहीं दीवार को काटकर फिट की गयी है, शायद दीवार बनाते समय उसमें डाल दी गयी है। जो भी हो सोंचना बेमानी है। खिड़की नायाब नमूना है मनुष्य की कलाकृति का जो उसे भगवान से भी बड़ा बनाती है। भगवान ने संसार बनाया। मनुष्य ने खिड़की का अविष्कार करके संसार को दो भागों में बाँट दिया। खिड़की सरहद है दो संसारों की। एक ओर अंदर का संसार है, दूसरी ओर बाहर का।


खिड़की एक सुविधा है, अंदर के संसार के लिए जहाँ से झाँकता है वह और मजे लेता है बाहर के और कभी कभी हस्तक्षेपभी करता है, कभी अंदर से आवाज देता है कभी खिड़की के पास टिककर मोहता है बाहरी संसार को। कभी कभी यह अपना सुंदर सा परिचय देता है बाहरी संसार को, फेंक देता है बाहर अपना कूड़ा करकट और दो चार भद्दी बातें।


खिड़की असुविधा है बाहरी संसार की। बाहरी संसार इसी से होकर दखल देता है भीतरी संसार में और छिन्न भिन्न कर देता है आन्तरिक निजता को। यह प्रायः सहन नहीं होता तब बंद कर दी जाती है और चिढ़ाती है बाहरी संसार को कि लो और करो ताक झाँक। बाहर विवश होता है। उसे अधिकार नहीं है इसे खोलने या बंद करने का। यह अधिकार सिर्फ अंदर के संसार के पास सुरक्षित है।


इस खिड़की से अंदर आती है धूप, ताजी हवा, बारिश की रिमझिम में भीनी फुहार और बाहरी संसार की जानकारी। अरे! लो इसी खिड़की से आ गयी सड़क की उड़ती धूल और पड़ोसियों के अलाव का धुआँ भी। राम! राम! राम! सारा कमरा भर गया है गर्द से। फिर से पोंछा लगाना पड़ेगा। कितनी बार सुबह से तीन बार तो लग चुका है। कहा था यह खिड़की सड़क की तरफ नहीं होनी चाहिए। किन्तु यहाँ सुनता समझता कौन है? सुनने समझने के लिए भी एक खिड़की चाहिए। कानों में, नहीं हृदय में, नहीं मन पर।


एक अन्य संसार भी लटका हुआ दिख जाता है कभी कभी इस खिड़की पर जिसमें कभी अंदर जाने की छटपटाहट होती है तो कभी बाहर आने की। बड़ी विचित्र दशा होती है इस संसार की। इसे अंदर या बाहर होने का आनन्द भी नसीब नहीं और एक तरफ लटका रह जाना इसे पसंद नहीं। अंदर का संसार इसे अंदर लेने को आतुर नहीं होता और बाहर की आवश्यकताएं उसे अंदर ठेलती हैं।


सोंचो खिड़की बंद है तो? बंद खिड़की कर देती है संसारों को कल्पनाशील। कोई परी है उस पार रूप का जादू लिए या शैतानों का झुण्डरचता है चक्रव्यूह। शायद पल रहा हो भविष्य उस पार जो उद्यत हो इसपार आने के लिए या मुक्ति की तड़प लिए कोई बन्धक।


अधखुली खिड़की तो कहीं ज्यादा रहस्यमयी होती है किसी रूपसी  की उनींदी आँखों की तरह। यह कर देती है उन्मत्त अपनी ओर दृष्टिपात करने वाले को। यह उद्वेलित करती है अंतर्मन जैसे शान्त सरोवर में कोई शैतान बालक फेंक गया कंकड़ी। यह रहस्य तब और गहरा जाता है जब दृष्टि पड़ते ही खिड़की बंद होना शुरू  हो जाती है धीरे धीरे धीरे। इसके विपरीत बंद खिड़की का खुल जाना उतार देता है रहस्य के छिलके और दर्शक को प्राप्त होता है पुनर्जन्म।


हममें से प्रत्येक कहीं न कहीं सम्बन्धित है किसी न किसी खिड़की से इस खिड़की का रहस्य पकड़ने के लिए, आनन्द लेने के लिए या जीवन की छटपटाहट का अनुभव करने के लिए।

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